जब टीचर शब्द के साथ
'फ़' उपसर्ग जुड़ जाता है
तब एक नया शब्द बन जाता है
शब्द की महत्ता उसके अर्थ से भी होती है
और यहीं अर्थ से मनुष्य की विवेचना होती है
अब कक्षा में पढ़ाने वाले टीचर
क्या हमें पढ़ाते है
सबसे पहले हिंदी अध्यापक के बारे में बताते हैं
दहेज़ लेना-देना एक बुरी प्रथा है
कन्यादान शब्द का प्रयोग नहीं होना चाहिए
ऐसा वो छात्रों को समझाते हैं
मगर अपने बेटे की शादी में बड़ी सी कार लेकर इतराते है
और कन्यादान देना पुण्य का काम है
इसी कर्म को करकर फूले नहीं समाते है
कबीर को पढ़ाकर भी समझ नहीं आई है
दुनियाभर के क्रियाकांड में उलझा मन, बड़ा ललचाई है
समाजिक विज्ञान का टीचर छूआछात और भेदभाव
ना करना गलत बताता है,
और खुद फोर्थ क्लास से पानी लेने से कतराता है
विज्ञान की भी अपनी मौज है
सूर्य-चंद्र ग्रहण कैसे अंतरिक्ष पर लगते हैं
कौन सा चक्कर पृथ्वी लगाती है,
यह एक विचित्र ज्ञान की नवीन सोच है
मगर क्लॉस के बाद इसी ज्ञान से यह पल्ले झाड़ आते हैं
इन ग्रहण की गलत धारणाओं में
खुद इतना रमे नज़र आते है,
सुबह नहाते है,खाना नहीं खाते है
और ना जाने ग्रहण के नाम पर क्या-क्या दान में दे आते हैं
सत्य तो यह है कि टीचर कोई शब्द नहीं है
यह एक ज़िम्मेदारी है
और इसे सही ज्ञान से निभा पाने में ही
समझदारी है
मगर टीचर खुद कहता है
कि हम टीचर बाद में है
पहले अपने जात-धर्म से सरोकार रखते है I
तभी तो यह टीचर बनाम फटीचर बन
समाज में भेदभाव करते हैं I
टीचर का काम शिक्षा देना है
मगर वो दोहरे व्यक्तित्व का परचम लहरा रहा है
और इसी पताका के नीचे
वह बौना नज़र आ रहा है
तभी तो टीचर और गुरु में अंतर है
टीचर किताबी ज्ञान देकर
पाठ्यक्रम ख़त्म करने का दायित्व निभाता है
पर गुरु भवसागर से पार लगाता है
शब्दों की ऐसी महिमा है
पर्यायवाची, विलोम, अनेकार्थी
पुस्तक की ही नहीं, सृष्टि की भी गरिमा है
इसलिए शब्दों के अर्थ को समझना जरूरी है
मगर ना समझ पाने की नहीं कोई मज़बूरी है
आप इसी भ्रम में रह सकते हो
और स्कूल-कॉलेज से पार पा सकते हों
जिस दिन किसी को ऐसा टीचर मिल जायेगा
जो अपने नाम को सार्थक कर पायेगा
उसी दिन 'फ़' उपसर्ग लगने से टीचर की परिभाषा नहीं बदलेगी
जीवन के व्याकरण में एक नया नियम आएगा
तभी समाज का हर कोना
सुधार और ज्ञान से स्वच्छ हो जाएगा
और सही मायने में फ़िर टीचर,
टीचर कहलाएगा।