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क्या लिखूं आज मेरे ही भारत देश के बारे में,
कैसे बताऊं भारत मां को आज उनकी बेटियों की हालत के बारे में।
इतने संघर्षों के बाद जिस देश को वीरों ने आजाद कराया था,
हां यह भारत देश मेरा तब सोने की चिड़िया कहलाया था।
वसुधैव कुटुंबकम का नारा हम जोरो से लगाते थे,
यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता यह हम शान से गाते थे।
वसुधा को अपना परिवार कहने वालों इस घर की चिड़िया को तो छोड़ दिया होता,
अगर उससे पंख नहीं दे सकते थे तो कम से कम जीने का हक तो दिया होता।
क्या गुजरी होगी उस मां पर जिसने अपना पेट काटकर उसे पाला होगा,
उसके पिता ने एक-एक रुपया उसके उज्जवल भविष्य के लिए संभाला होगा।
तोड़ दिया होगा दम ममता ने जब बेटी को उस हालत में पाया होगा,
कुछ देर तक तो पिता को होश भी ना आया होगा।
लेकिन खुश होगी आज वह मां जिसने अपनी गर्भ में ही अपनी बेटी का गला दबाया होगा ,
कम से कम उन दरिंदों के हाथों से तो अपनी बेटी को बचाया होगा।
अरे दुनिया वालों अब तुम किस पर उंगली उठाओगे,
उस 6 साल की मासूम बच्ची को भी क्या तुम अब साड़ी पहनाओगे।
बाहर न जाने देना लड़की को यह तो तुम शान से कहते हो,
पर घर में रेप करने वाले दरिंदों को तुम चुपचाप चाहते हो।
क्या मिला तुम्हें उसे इतनी बेदर्द मौत देकर,
अरे तुम्हारे घर भी तो बेटी आएगी किसी दिन जन्म लेकर।
मत तोड़ो इन फूलों को अब जिनसे तुम्हारा घर आंगन भी महकता है,
खेलने दो ना इन्हें अपने आंगन में इनसे तुम्हारा घर भी तो चहकता है।
नहीं तो एक दिन तुम्हारा दिल भी रो-रो कर पछतायेगा,
जब सड़क पे तुम्हारी बहन या बेटी को जिंदा जलाया जाएगा।
सरकार से मेरी यही अर्जी है सभी बेटियों को न्याय दिलाया जाए,
इन दरिंदो की दरिंदगी को फांसी पर लटकाया जाए।

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