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आज का युवा सोशल मीडिया के बिना एक पल भी रहना मुश्किल समझता है। सुबह उठते ही सबसे पहला काम मोबाइल उठाकर नोटिफिकेशन चेक करना और रात को सोने से पहले आखिरी बार स्क्रीन देखना अब आम आदत बन गई है। यह आदत न केवल समय की बर्बादी करती है बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा असर डालती है। सोशल मीडिया ने दुनिया को एक-दूसरे के करीब लाया है, लेकिन इसके साथ ही यह युवा पीढ़ी के लिए एक चुनौती भी बन गया है।

सोशल मीडिया पर हर कोई अपनी जिंदगी का सबसे अच्छा हिस्सा दिखाता है। खूबसूरत तस्वीरें, नए कपड़े, यात्रा की झलकियाँ और शानदार पल अक्सर पोस्ट किए जाते हैं। इन्हें देखकर कई युवा सोचते हैं कि उनकी ज़िंदगी उतनी रोमांचक या सफल नहीं है। वे अनजाने में दूसरों से अपनी तुलना करने लगते हैं। यह तुलना धीरे-धीरे आत्मविश्वास को कमजोर कर देती है और अवसाद जैसी मानसिक समस्याओं का बीज बो सकती है। उदाहरण के तौर पर, इंस्टाग्राम पर किसी मित्र की फोटो पर कम लाइक्स आने पर कई किशोर उदास महसूस करते हैं और यह सोचते हैं कि उनकी पहचान या महत्ता कम हो गई है।

लाइक्स और फॉलोअर्स पर निर्भरता आजकल कई युवाओं में आम हो गई है। अगर किसी पोस्ट पर अपेक्षित संख्या में लाइक्स नहीं आते तो उन्हें लगता है कि उनकी अहमियत घट गई है। यह मानसिकता भीतर से कमजोर करती है और आत्मसम्मान सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया पर निर्भर हो जाता है। कई बार, ऐसे युवाओं में यह सोच बन जाती है कि उनका मूल्य केवल डिजिटल मान्यता से तय होता है। यह मानसिक दबाव धीरे-धीरे चिंता, तनाव और भावनात्मक अस्थिरता का कारण बन सकता है।

अनंत स्क्रॉलिंग और समय की बर्बादी भी एक गंभीर समस्या है। थोड़ी-सी खाली जगह मिलने पर युवा तुरंत मोबाइल उठाकर स्क्रॉलिंग शुरू कर देते हैं। यह स्क्रॉलिंग कभी खत्म नहीं होती और अनजाने में घंटों बर्बाद हो जाते हैं। इससे उनकी पढ़ाई, नींद और ध्यान केंद्रित करने की क्षमता प्रभावित होती है। लगातार स्क्रीन देखने से आँखों में थकान, सिरदर्द और नींद की समस्याएँ भी पैदा हो सकती हैं। इसी वजह से कई युवा महसूस करते हैं कि उनका समय उनके हाथ से निकल रहा है, और यह मानसिक थकान को बढ़ाता है।

एक छोटी कहानी इसे और स्पष्ट करती है। 17 साल की छात्रा अन्वी हमेशा अपनी इंस्टाग्राम फीड पर दूसरों की “perfect life” देखती थी। वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान नहीं दे पाती थी और हर बार दूसरों की पोस्ट देखकर उदास महसूस करती थी। एक दिन उसने महसूस किया कि वह खुद की पहचान खो रही है और मानसिक रूप से कमजोर हो रही है। तब उसने निर्णय लिया कि वह हर दिन एक घंटा डिजिटल डिटॉक्स करेगी, ऑफलाइन गतिविधियों में समय बिताएगी और वास्तविक रिश्तों को महत्व देगी। कुछ ही हफ्तों में अन्वी की नींद में सुधार आया, उसका आत्मविश्वास बढ़ा और उसने महसूस किया कि सोशल मीडिया अब उसके जीवन पर हावी नहीं है।

सोशल मीडिया का प्रभाव केवल मानसिक स्थिति तक सीमित नहीं है; यह वास्तविक जीवन के रिश्तों पर भी असर डालता है। कई युवा परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताने की बजाय ऑनलाइन दोस्तों के साथ समय बिताते हैं। यह वर्चुअल जुड़ाव उन्हें असली दुनिया से दूर कर देता है और उनके संबंध कमजोर हो जाते हैं। असली जीवन के संबंधों की कमी अकेलेपन और भावनात्मक दूरी को बढ़ाती है। इसलिए सोशल मीडिया का संतुलित उपयोग करना और वास्तविक जीवन के रिश्तों को महत्व देना बहुत जरूरी है।

मानसिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए कुछ सरल उपाय मददगार साबित हो सकते हैं। सबसे पहले, डिजिटल डिटॉक्स अपनाना चाहिए। दिन में कम-से-कम एक घंटा मोबाइल से दूरी बनाना चाहिए। इस समय का उपयोग किताब पढ़ने, टहलने, खेलों में हिस्सा लेने या परिवार के साथ बातचीत करने में किया जा सकता है। ये छोटे-छोटे पल मानसिक शांति और आत्मसंतोष देने में मदद करते हैं।

दूसरी महत्वपूर्ण बात है तुलना न करना। सोशल मीडिया पर दिखाई जाने वाली ज़िंदगी हमेशा पूरी सच्चाई नहीं होती। हर तस्वीर और पोस्ट के पीछे संघर्ष और मेहनत छिपी होती है। यदि युवा इसे समझ लें तो उनकी तुलना करने की प्रवृत्ति कम हो जाएगी और आत्मविश्वास बनाए रखने में मदद मिलेगी।

तीसरी बात, सोशल मीडिया पर बिताए समय की सीमा तय करना ज़रूरी है। दिन में निर्धारित समय के बाद मोबाइल का उपयोग रोक देना मानसिक थकान को कम करने, नींद बनाए रखने और पढ़ाई पर ध्यान केंद्रित करने में कारगर है।

वास्तविक जीवन के रिश्तों को महत्व देना भी आवश्यक है। वर्चुअल दोस्ती अच्छी है, लेकिन असली जीवन के रिश्ते ही स्थायित्व और खुशी देते हैं। परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताना, उनकी समस्याएँ समझना और अपने अनुभव साझा करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

अंततः, सोशल मीडिया बुरा नहीं है, लेकिन इसका अत्यधिक और गलत उपयोग युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। यदि इसे संयम और समझदारी से इस्तेमाल किया जाए, तो यह ज्ञान, मनोरंजन और अवसर का बड़ा साधन बन सकता है। युवा जब सोशल मीडिया को नियंत्रण में रखेंगे, वास्तविक रिश्तों को महत्व देंगे, और तुलना से दूर रहेंगे, तभी उनका मानसिक स्वास्थ्य मजबूत और खुशहाल रह सकता है।

इस कहानी और उदाहरणों के माध्यम से स्पष्ट होता है कि सोशल मीडिया का सही इस्तेमाल मानसिक स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो सकता है। संयम, डिजिटल डिटॉक्स और वास्तविक रिश्तों को महत्व देना इसे एक सकारात्मक और मददगार उपकरण बना देता है।

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