ज़िंदगी नहीं रूकती है...
ज़िंदगी नहीं रूकती है...
लम्हा दर लम्हा वक़्त के गुज़रने से
सुबह और शाम के चलने से
चांद सूरज के निकलने से ढलने से
तेज़ लहरों के उतरने से चढ़ने से
जल्ज़लो की जुम्बिश से, शहरों के गिरने से
सैलाबों के आने से जाने से
ज़िंदगी नहीं रूकती है...
ज़िंदगी नहीं रूकती है किसी के रूठ जाने से
साथी छूट जाने से या रिश्ते टूट जाने से
किसी मज़बूत बंधन मे कभी भी जोड़ आने से
किसी गुलज़ार रस्ते पे अचानक मोड़ आने से
किसी के छोड़ जाने से या वादे तोड़ जाने से
ज़िंदगी नहीं रूकती है...
ज़िंदगी फिर भी चलती है
कि जब चलने की वजह न हो
कि जब दिलों मे जगह न हो
किसी टूटी हुई उम्मीद से, जीत से, हार से
ये बेपरवाह चलती है राहों के फूलों से ख़ार से
है इसका काम तयशुदा मंज़िल की जानिब बढ़ते जाने का
कभी खो कर सभी कुछ और कभी तो जीत जाने का
कभी थक कर कभी गिर कर संभल कर उठ दिखाने का
किसी का साथ देने का कोई वादा निभाने का
किसी के ग़म मे रो कर और कभी कर मुस्कुराने का
ज़िंदगी नाम है हर हाल मे जी कर दिखाने का
ज़िंदगी की तस्वीर हर दिन एक नई दिखती है
पर कभी किसी के लिए ज़िंदगी नहीं रूकती है...