Photo by Elti Meshau: pexels

है बुरे भीतर से वो पर ,
खुदको भला दिखलाते है ।

खुदके मन में अज्ञान भरा ,
सबको ज्ञान बतलाते है ।

जो बहते है दो आँखों से ,
वो आँसू भी तो झूठे हैं ।

कहते थे तारा कब टूटेगा ,
अब टूट गया तो रूठें है ।

बर्षों से खिल कर बरस रहा ,
रोता अब वो भी सावन है ।

लगाकर मुखौटा राम का ,
हर मन में बैठा रावण है ।।

था द्वापर वो जो बीत गया ,
अब कलियुग की काया है ।

उजियारे का अंत हुआ है ,
अब अंधकार की काया है ।

जिसका खुद में कोई अंश नही ,
करते हरदम वे बात वही ।

खुदको भगवान बताते है पर ,
है दानव तक कि औकात नही ।

मन में जिनके है पाप भरें ,
देते वो पुण्य के भाषण है ।

लगाकर मुखौटा राम का ,
हर मन में बैठा रावण है ।।

है मूर्छित सत्य यहा पर ,
लगे असत्य बलवान है ।

धर्म का कोई न करता आदर ,
अधर्म का होता सम्मान है ।

मैन में सबके है विष घुले ,
पर मृदुल है सबके बोल वही ।

झूठ यह पर विजय है पाता ,
सत्य का कोई मोल नही ।

पतीत से भरी इस दुनियां में ,
अब न कोई पावन है ।

लगाकर मुखौटा राम का ,
हर मन में बैठा रावण है ।।

लगाकर मुखौटा राम का ,
हर मन में बैठा रावण है ।।

.    .    .

Discus