है बुरे भीतर से वो पर ,
खुदको भला दिखलाते है ।
खुदके मन में अज्ञान भरा ,
सबको ज्ञान बतलाते है ।
जो बहते है दो आँखों से ,
वो आँसू भी तो झूठे हैं ।
कहते थे तारा कब टूटेगा ,
अब टूट गया तो रूठें है ।
बर्षों से खिल कर बरस रहा ,
रोता अब वो भी सावन है ।
लगाकर मुखौटा राम का ,
हर मन में बैठा रावण है ।।
था द्वापर वो जो बीत गया ,
अब कलियुग की काया है ।
उजियारे का अंत हुआ है ,
अब अंधकार की काया है ।
जिसका खुद में कोई अंश नही ,
करते हरदम वे बात वही ।
खुदको भगवान बताते है पर ,
है दानव तक कि औकात नही ।
मन में जिनके है पाप भरें ,
देते वो पुण्य के भाषण है ।
लगाकर मुखौटा राम का ,
हर मन में बैठा रावण है ।।
है मूर्छित सत्य यहा पर ,
लगे असत्य बलवान है ।
धर्म का कोई न करता आदर ,
अधर्म का होता सम्मान है ।
मैन में सबके है विष घुले ,
पर मृदुल है सबके बोल वही ।
झूठ यह पर विजय है पाता ,
सत्य का कोई मोल नही ।
पतीत से भरी इस दुनियां में ,
अब न कोई पावन है ।
लगाकर मुखौटा राम का ,
हर मन में बैठा रावण है ।।
लगाकर मुखौटा राम का ,
हर मन में बैठा रावण है ।।