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हिंदी दिवस हम लोग हर साल 14 सितंबर को मानते हैं । जिसका उद्धव हमारे संविधान में एक निर्णय के द्वारा लिया गया वह दिन था भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद का 50 वां जन्मदिन, वह ऐतिहासिक पल था जब हमारे संविधानवेत्ताओं ने 1949 में पूरे विधिवत इसे स्वीकार किया लेकिन इसे सिर्फ आधिकारिक भाषा के रूप में ही अपनाया जा सका । इसका वजह है हम भारतीयों का एकजुट न रहना अर्थात विचारों में भिन्नता होना । ऐसे क्षेत्र जो हिंदीभाषीय नहीं थे, उनके द्वारा विरोध होने लगा । उनका कहना था कि हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी को भी राजभाषा के रूप में स्वीकार किया जाए ।

आज हम जिस हिंदी दिवस की बात कर रहे हैं वह हमारे लिए मानो एक अनुच्छेद बनकर रह गया है जिसे हमने एक जामा तो पहना दिया है मगर मात्र चंद पन्नों पर रह गया हो जो इस तरह से है... हिंदी हमारी मातृभाषा है उसे संविधान के भाग 17 के अध्याय के अनुच्छेद 343 (१) इस तरह से वर्णन किया गया है.... क्या यह वास्तव में व्यवहार में है ?

हम कोई दिवस क्यों मनाते हैं ? सबसे पहले यह प्रश्न हमारे सामने खड़ा होता हैA यदि हम इसे गहराई से सोचे तो हम देख सकते हैं कि हमारे समाज में बहुत सारे दिवस मनाए जाते हैं जैसे & बेटी दिवस, बाल दिवस, महिला दिवस, विकलांग दिवस आदि । हम यह महसूस कर सकते हैं कि जब समाज के किसी वर्ग विशेष की छवि धूमिल पड़ रही होती है तो हम उसे दिवस के रूप में मानने लगते हैं, ताकि उसका अस्तित्व हमारे समाज में बना रह सके।

बड़े दुर्भाग्य की बात है कि हिंदुस्तान में हमारी मातृभाषा राष्ट्रभाषा नहीं बन पा रही है। अभी हाल ही में समाचार में सुनने में आया था कि मध्य प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेज में हिंदी भाषा में भी पाठ्यक्रम होंगे, जिससे हिंदी भाषीय छात्रों को लाभ पहुंचेगा, मगर कुछ ही दिन में यह खबर सामने आई कि इंजीनियरिंग के हिंदी माध्यम की जो सीटें थी, उसमें बहुत ही कम सीटें भर पायी, 37 सीटों में से सिर्फ 3 सीट ही भर पाई । (दैनिक भास्कर 14 सितंबर)

इसका वजह क्या हो सकता है ? आईए जानते हैं कि लोगो के अपने-अपने विचार क्या थे ? किसी को लग रहा था भविष्य में इसकी मांग कम रहेगी, किसी को लग रहा था विदेश जाने के अवसर से वंचित रह जाएंगे, किसी को इस भाषा में तकनीकी समझ नहीं थी, किसी को बहुत ही क्लिष्टता नजर आ रहे थी आदि।

हिंदीभाषीय क्षेत्रों में पाए गए ऐसी विडंबना को क्या कहा जा सकता है? क्या उनको अपनी मातृभाषा से लगाव नहीं है? या फिर इससे कोई शर्मिंदगी है…

शर्मिंदगी से एक बात याद आ यी, आज प्राइवेट सेक्टर में नौकरी करने वालों से यदि मिला जाए तो देखा जा सकता है, कि किस तरह से अंग्रेजी ना आने पर उनकी छटनी कर दी जाती है। क्या इसका दोषी हम सरकार को माने या फिर हम भारतीयों की विविधता जो अपनी मातृभाषा को बचा सकने में असमर्थ है।

आज हिंदी दिवस के अवसर पर न केवल कुछ प्रतिस्पर्धा या नुक्कड़ नाटक करा देने से स्वयं को गौरवान्वित महसूस नहीं करना चाहिए

और न, ही हर किसी को अपने जीवन में स्वयं को इससे शर्मिंदगी महसूस करना चाहिए । बल्कि हमें ईश्वर ने जहां मौका दिया उस क्षेत्र में इसको उच्च स्थान देने का प्रयास करना चाहिए । न, ही सिर्फ दिखावे के लिए बल्कि, हमें इसे आत्मसात करना होगा । सबसे पहले हमें स्वयं को इसमें गौरव महसूस कराना होगा ।

आज अगर देखा जाए तो, इसका एक मात्र ही समाधान है कि, हमें शर्मिंदगी को छोड़ना होगा और स्वयं को महसूस कराना होगा कि ‘’हिंदी है हम वतन के हिंदुस्तान हमारा’’

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