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भारत एक हिंदू राष्ट्र है। कन्या का जन्म होना कहीं अभिशाप बन जाता है तो कहीं वरदान। दोनो ही परिस्थित में मां बाप सपना सजा लेते हैं अपनी बेटी को दुल्हन बना कर ससुराल भेजने का। जैसे एक यही जीवन का लक्ष्य है। बेटी को पढ़ा लिखा कर अपने दम पर जीना सिखाने में भले ही चूक हो जाए, पर पति को परमेश्वर कैसे बनाना है, ये सिखाना नही भूलते। कुछ बेटियां जो समाज की खोखली मान्यताओं से ऊपर उठ कर यदि पढ़ लिख भी जाएं तो हर वक्त उन्हें अहसास फिर भी करवाया जाता है की औरत की जगह पति के चरणों में ही है। अपना पत्नी धर्म निभाते हुए, मर्यादाओं का पालन करते हुए, व्रत उपवास आदि करके पति की उम्र बढ़ाते हुए, घर और घर के लोगो का ध्यान रख रही है तो जानिए की वह एक संस्कारी और अच्छे घर की बेटी और बहु कहलाने के योग्य है। अगर कहीं भी भूल हुई तो दोषी सिर्फ लड़की नही, मां-बाप, भाई-बहन, और परिवार के वो सभी सदस्य होंगे जिनसे कभी ससुराल वाले मिले भी नहीं। पता नही कब तक समाज के मुखिया हमे ये सब सिखा कर आने वाली पीढ़ियों का भविष्य गर्त में धकेलते रहेंगे। पुरुष के कंधे से कंधा मिला कर चलने की योग्यता रखने वाली स्त्री अगर कभी समाज के एकाध नियम का उल्लंघन कर भी दे तो क्या हो जायेगा? क्या हुआ अगर कभी तबियत नाजुक होने पर वो देर तक सोती रही तो? क्या हुआ अगर भूख लगने पर पति से पहले खाना खा लिया तो? क्या हुआ अगर कभी मन की कोई बात बचपन की सहेली या मां, बहन के साथ बांट ली तो? अब क्या जिंदा रहने पर भी प्रश्नचिन्ह लगाओगे? जीवन ईश्वर की दी हुई अमूल्य भेंट है ना, फिर क्या सांसे लेने के लिए भी पति, ससुराल, समाज; सब की इजाज़त लेनी पड़ेगी? इन कुरीतियों से मुक्त होकर क्या स्त्री एक साधारण स्त्री नहीं रहेगी? एक कदम भी बेड़ी से बाहर रखा नही, कि चरित्रहीनता का ऐसा लेबल लग जाएगा माथे पर की छुटाने से भी नही छूटेगा। ये नियम कानून, मर्यादाएं, मान्यताएं; ये सब भगवान ने नही बनाई। बल्कि उस पुरुष समाज ने निर्धारित की हैं जो खुद को हमेशा ईश्वर का दूत और स्त्री को अपनी दासी मानता आया है। अब समय जागने और जगाने का है। बराबरी का अधिकार मात्र भाषण और वोट तक सीमित न रहे। प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत मिलने वाली सब्सिडी का लाभ उठाने के लिए घर की रजिस्ट्री में तो पत्नी का नाम लिखवा दिया, पर क्या घर के आय और व्यय पर हिसाब रखने के लिए पत्नी को बराबरी का अधिकार देकर उसकी किसी सलाह पर अमल कर पाओगे? मेरी बेटी मेरा अभिमान की पोस्ट बना कर फेसबुक पर तो प्राउड फादर बन गए, पर जो पत्नी घर में रह रही है वो भी किसी की बेटी और अभिमान है, ये याद रख पाओगे? बड़ी बड़ी बातो को छोड़ो पुरुषों, इस बार पत्नी ने करवा चौथ का व्रत नही किया या मांग में सिंदूर नही लगाया तो कहीं तुम स्वर्गवासी तो नही हो जाओगे???

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