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दोस्ती... एक ऐसा रिश्ता जहाँ तुम अपने सबसे स्पष्ट रूप से परिचित होते हो। एक ऐसा रिश्ता जहाँ कोई दिखावा नही होता, कोई सफाई देने की जरूरत नही पड़ती, जहाँ तुम्हे समझा जाता है बिगर कुछ बोले सिर्फ आखों की भाषा से सब समझ लिया जाया है। जहां तुम्हे खुदको समझने के लिए लफ़्ज़ नही ढूंढने पड़ते वहाँ बस तुम्हे दिल से स्वीकार कर लिया जाता है। दोस्ती जैसे खूबसूरत रिश्ते के गवाह तो स्वयं श्री कृष्ण तक रहे हैं । कृष्ण और सुदामा की दोस्ती। इनकी मिसाले अक्सर बहुत लोग दिया करते हैं। परंतु इससे मिली सीख कितने ले पाते हैं? कृष्ण और सुदामा से जुड़ा एक किस्सा अक्सर सब गुन गुनते हैं.. .. जब सुदामा कृष्ण से मिलने द्वारका आते हैं, और कृष्ण उनका स्वागत उन्हे गले लगा कर करते हैं। उनका अथिति सत्कार करते हैं । परंतु क्या आपने उनकी दोस्ती में एक चीज़ पर गौर किया? सुदामा का कृष्ण को समझना । देखिए हमारा जीवन कोई सीधी रेखा नही जिस पर सीधे सीधे चला जा सके । जीवन में हम जैसे जैसे आगे बढ़ते हैं वैसे वैसे हम चीजों में , रास्तों में , लोगों में चुनाव करना पड़ता है। हालातों के अनुसार हमे किस दिशा में किसके साथ चलना हैं ये हमे चुनना ही पड़ता है क्योंकि ज़िंदगी में आगे बढ़ने के लिए ऐसा करना आवश्यक होता है। समय के साथ हमे आगे बढ़ना पड़ता ही है अपनी मंज़िल की ओर या उन कर्मों की ओर जो जिन्हें आगे जाकर हमे पूर्ण करना है।

हम बड़े होते है तो हमे हमारे कर्म पथ पर आगे बढ़ना होता है और इस सब में हमसे कुछ रिश्ते पीछे छूठ जाते है। सब दोस्त अपनी अपनी राहों पे निकल पड़ते हैं अपनी अपनी ज़िंदगी के कर्म पथ पर अपने कर्तव्यों की पूर्ति करने। परंतु सबके हिस्से खुशियां या कामयाबी नही लगती । सब अपने कर्मो के अनुसार अपनी अपनी जगह अपना काम करते हैं।

ऐसे में कम कामियाब दोस्त ज़्यादा कामियब को देख उसपे न मिलने का तना कसने में पीछे नही रहते । " बड़े लोग" , " तुमको हमसे मिलने की फुरसत कहा होगी? अब तो हम बड़े आदमी हो गए हो। " या " इतने सालों में तुमने कभी मुड़कर नही देखा की तुम्हारा दोस्त किया हाल से गुज़र रहा है ।" ऐसे ताने अक्सर लोग अपने दोस्तों को दे दिया करते हैं । परंतु क्या ये सही है? जब हम बड़े होते हैं और जीवन के रास्ते अलग हो जाते है और हर किसी को अपने हिस्से के कर्तव्यों का निर्वाह करना ही पड़ता है। कार्य छोटा है या बड़ा ये तय करने के लिए हमारी बुद्धि सक्षम हो चुकी होती है। परंतु अपने ही दोस्त के लिए ये इतनी संक्रीण क्यों कर दी जाती है? देखिए सुदामा जानते थे कि कृष्ण को अपना अपना कर्तव्य करने हेतु अपनी ज़िम्मेदारी निभाने हेतु गोकुल छोड़ द्वारका नरेश बनना पड़ा और एक राजा की कितनी जिम्मेदारियां होती हैं इससे वो भली भांति परिचित थे। इसी लिए उन्होंने कभी उनको गलत नही समझा । दोस्ती का पहला नियम ही होता है एक दूसरे के हाल को समझना । बिना मांगे बस एक दूसरे लिए प्रेम भाव रखना एक दूसरे की परवाह करना उनकी मजबूरियों को समझना की ज़िंदगी के किसी भी मोड़ पर हो चाहें बिन कहे एक दूसरे के हाल जान लेना । और कृष्ण सीखते हैं की तुम ज़िंदगी में कितने ही ऊंचे पद पर जाकर बैठ जाओ परंतु अपने रिश्तों के बीच ये ऊंच नीच का भेद नहीं लाना चाहिए क्यूंकि ये ही रिश्ते होते हैं जिनकी वजह से हम ज़िंदगी की सीखों को सीखते हैं और आगे की मुश्किलों का सामने करने लायक बनने हैं। ये रिश्ते असल में हमारा आधार होते हैं। एक इमारत कितनी ही ऊंची और लंबी क्यों न हो जाए उसकी मजबूती उसका आधार तय करता है।

आज कल के दौर में लोग रिश्ते नाते दोस्ती किसी की कदर ही नही करना जानते । आज कल बस सबको एक दूसरे की ज़िंदगी में " प्रायोरिटी" चाहिए। इसी एक शब्द के पीछे लोग दोस्ती तोड़ बैठते हैं। जबकि हम ये भूल जाते हैं की दोस्ती किसी प्रायोरिटी के मीटर पर नही नापी जाती। दोस्ती तो बस निस्वार्थ भाव से निभाई जाती है। एक दूसरे के लिए उसके अच्छे बुरे वक्त में जाकर खड़े होना । उनका साथ देना बिना किसी मांग के क्यूंकि बस तुम उनको अपना दोस्त मानते हो और दोस्ती में साथ खड़े रहना तुम्हारा फर्ज़ है। इसमें हिसाब किताब नही जोड़े जाते । इंसान की ज़िंदगी की जरूरतों के हिसाब से उनके जीवन में लोगों का आना जाना तय है, परंतु लोगों के आने या जानें से तुम्हारा स्थान वो चाहकर भी किसी को नही दे पाएंगे उनको एक न एक मोड़ पर अपने दोस्त की ज़रूरत पड़ती ही है। तुम बस इतना ध्यान रखो को उनको जब भी तुम्हारी जरूरत हो तुम उनके लिए रहो। कभी कभी पुराने साथ हमे हमारे मजबूत आधार का एहसास दिलाते है , खासकर तब जब हम ज़माने की ठोकरें खाकर घर लोटे हैं। जब ज़माना तेज़ी से बदल रहा होता है जब अपने पुराने रिश्तों की स्थिरता हमारे अंतर मन को शांति प्रदान करती है । सच मानिए वो सबसे सुखद पलों में से एक होता है। जब वर्तमान बिखरता हुआ नज़र आता है तो उसी के साथ कहीं न कहीं हम भी टूटा हुआ महसूस करने लगते हैं और जब ऐसे में कोई पुराना साथी का अकस्मात कंधे पर हाथ महसूस करो तो एक दम से दूनिया वापस खूबसूरत लगने लग जाती है तुम्हे हिम्मत मिलती है। ऐसा लगता है थक हार के घर आए बच्चे को माँ की गोद में सिर रखना नसीब हो गया हो। सच में दोस्ती वाकई सबसे खूबसूरत रिश्ता है। उसे ऐसे मतलब के तराजू में मत तोलिएगा जहाँ दोस्ती का मान काम हो जाए।

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