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सबब किस बात का याद तुम्हें है आज भी,
कौनसी गलती की डांट याद है आज भी,
कौनसी वो बचपन की कविता याद है आज भी ,
और कौनसी कहानी लगती है तुम्हें हकीकत आज भी,
कौनसी चोट के ज़ख्म आज भी ढो रहे,
किस बात के होने पर आज भी तुम रो रहे हो,
किसके होने का अहसास हो जाता है आज भी,
या किसे ढूंढे तुम्हारा होना आज भी,
कहां रोक दिए कदम तुमने उसके जाने के बाद भी,
कहां निकलते हो उन्हें फिर से तलाशने आज भी,
सोचो कुछ ऐसा है जो बदला ना हो,
कुछ ऐसा जो अब भी कल सा हो,
याद करो उस याद को जिसका होना हो आज भी,
जिसके होने में वही अहसास हो आज भी,
कुछ तो जरूर होगा, जो तुम्हारी याद में कहीं मगरूर होगा,
कुछ धुंधला भले ही होगा,
मगर उसका होना होगा वैसा ही आज भी,
जैसा कल था वो , वो लगेगा वैसा ही तुम्हें आज भी,
भले ही धूमिल होगी वो याद
और शायद हो ना वो कोई बड़ी बात,
मगर वो जैसी थी वो वैसे ही लगती होगी आज भी,
और शायद उस याद पर हंसी आ जायेगी तुम्हें आज भी,
जिसमे तुम जैसे थे वैसे ही मिलोगे आज भी,
तोलो नहीं खुद को बस टटोलो एक बार,
खुद से मिलकर कैसा लगा वो सोचो एक बार,
क्यों दुनिया की नजरों से देखो तुम,
तुम तुम से हो तो तुम जैसा ही रहो ना आज भी,
हां बहुत कुछ देखा होगा इस जिंदगी में तुमने,
मगर उसमें क्यों रखना खुदको आज भी,
कल जो हुआ वो कल था ,
उससे क्यों डरते हो तुम आज भी,
बदलाव कल भी था और वही है हकीकत आज भी।।

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