Photo by Jeremy Lapak on Unsplash

भागे भागे हम फिरे, बहुत कुछ पीछे छोड़,
कभी दौड़े इक ओर, कभी निकले दूजे छोर,
ना मंजिल की भोर दिखी, ना दिखा ठिकाना कोई,
गिर गिर संभला फिर कहीं, तब निकले नई राह की ओर,
मोती समझा पत्थर जो, तब समझा यहां ना जोहरी कोई,
कौन तराशे किसको है, जब जाने ना सब कुछ यहां कोई,
कौन करे है तय यहां पर, किसको मिलना क्या है,
मेहनत करता जो यहां, तब छूटे ना उससे मंजिल कोई,
डर कर जो पीछे रहा, वो बैठा है सुख भी छोड़,
संभाले था वो तो सब कुछ, पर फिर भी अकेला हर मोड़,
चलते चलते निकल पड़े , हम अपनी धुन को जोड़,
कौन कहे है क्या यहां, हम ना सुने हैं अब और,
हाथों में ले चले अब अपने कल की डोर,
साथ भी होंगे अपने जो करे ना अब हम होड़,
जो अपना होगा पा लेंगे, दूजे से क्यों करे हम तोल,
भागे भागे हम चले अब अपने घर की ओर,
वो मंजिल की भोर दिखी, वो दिखा सवेरा कल का भी,
नजरें नहीं नज़रिया बदला तो रहा सुकून अब का भी

.    .    .

Discus