उस चांद की ओर का कभी सोचा किसी ने ख्वाब था ,
मुमकिन होगा या नहीं तब इस बात पर भी सवाल था,
अनजान थी दुनियां तब विज्ञान के ज्ञान से,
तब भी भेजा भारत ने अपना पहला चंद्रयान था,
होगा क्या, या होगा क्या नहीं मालूम ना उसका अंजाम था,
फिर भी कोशिश की बहुत और पाया एक मुकाम था,
धीरे धीरे मालूम पड़ा दुनियां का क्या राज है,
जितना खोजो उतना कम, ये समंदर सा भ्रमाण है,
फिर जाना और विज्ञान को, खोजा बहुत भ्रमाण को,
कहीं सफलता हाथ लगी, कहीं विफल बहुत सी बार हुए,
कभी खोज निकाला मंगल भी, कभी विफल कई अंजाम हुए,

एक बार फिर निकले उस चांद की ओर हम,
करे अथक प्रयास और निकल पड़े फिर बांधे इक डोर हम,
रातों रातों काम कर बनाया ये यान था,
अब जाना चांद पर फिर अपना चंद्रयान था,
उम्मीदें बांधे चल पड़े बिना अंजाम को सोच कर,
मगर मालूम नहीं टूट जायेगा ये ख्वाब आखिरी मोड़ पर,
अचानक से कुछ यूं हुआ , ये सपना ना पूरा हुआ,
जाता जाता रह गया , चांद पर अपना सफर,
निराशा सी छा गई, हर मुस्कान ना जाने कहां समा गई,

गिर गिर संभला फिर कहीं, फिर देखा सपना वही , 
अब सपना नहीं हकीकत बने ऐसे कुछ तैयारी की,
विज्ञान के ज्ञान से फिर चली अपनी सवारी थी,
उड़ना फिर से उसको चांद के छोर था
इस बार फिर चंद्रयान चला चांद की ओर था,
धीरे धीरे पार किया उसने हर पड़ाव को,
चलता चलता पहुंच गया वो चांद की ओर को,
अब जा पहुंचे हम चांद पर, अदभूत ये अहसास था ,
दूर के थे चंदा मामा अब पाया उन्हें अब हमने पास था,
उस चांद की ओर का कभी सोचा किसी ने ख्वाब था ,
अब ख्वाब नहीं हकीकत में चांद पहुंचा अपना चंद्रयान था,,

.    .    .

Discus