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कश्ती डूबी है किसी की
इस बात की खुशी दूसरों को बड़ी है,
अपने नौका से ज्यादा
दूसरों की नौका की उन्हें पड़ी है,
सवारी भर भर अपनी में
दूसरों की खाली देख भी उनकी आफत बढ़ी है,
क्या है ऐसा उसमे जो अब भी वो निकली नहीं है,
इस बात की भी उन्हें नजाना क्यों बेचनी बढ़ी है,
अपनी नौका की खबर नहीं उतनी
जितनी दूसरों की नौका से उन्हें अजीब दिल्लगी है,
अपना अपना कर कर भी दूजे को ही देखें हैं
उसके घर का हाल क्या है
इस बात के ले रखे उन्होंने ठेके हैं,
अपने कश्ती पता नहीं
ये बस दूजे की कश्ती को देखे हैं...

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