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ज़िंदगी की गाडी में ईंधन कहाँ से लाओगे,
जितना तुमने कमाया है, उसे बखूबी कैसे खर्च कर पाओगे,
कितना उससे खर्चा निकले कितना उससे बचाकर रख पाओगे,
बात यही काम की कैसे कम में ज्यादा नफ़ा तुम पाओगे,
रखना होगा हिसाब तुम्हें हर उस इक रुपये का,
करना होगा विचार तुम्हें हर एक उस खर्चे का ,
कभी तोल मोल भी करना होगा, कभी बचा बचा कर चलना होगा,
कभी समझना होगा गणित तुम्हें, तो कभी थोड़ा व्यापारी भी बनना होगा,
तभी तो कुछ बचत भी कर पाओगे,
कभी बढ़ेगी मेहंगाई कहीं, और कहीं मंदी की मार भी खानी होगी,
कभी दिवाली रोशन होगी भरकर तुम्हारी,
कभी कुछ कम रोशन भी माननी होगी,
कभी दिखेगा कुछ मुफ्त कहीं, कभी लगेगा महंगा भी,
इसलिए खींच खींच कर हर रुपये का, बराबर लगाओ हिसाब सभी,
बात रहेगी हर बार यही, कि ज़िंदगी की गाड़ी को कैसे तुम्हें चलाना होगा,
कितना खर्च कर सकते हो और कितना हर खर्चपर बचाना होगा,
कितना निवेश तुम कर जाओ और कितना तुम नफ़ा भी पा लोगे,
यही समझ जो आ गया तो तुम इस जिंदगी की गाड़ी को बखूबी चला लोगे।।