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कुछ कहने के लिए मुझे इतना सोचना क्यों पड़ता है,
मैं भी तो तुम जैसी हूं ,
फिर भी मुझे तुमसे खुद को तोलना क्यों पड़ता है,
बंदिशों में क्यों रखते हो मुझे, क्यों दीवारों में कैद करते हो मुझे,
जिनसे निकलने के लिए मुझे कुछ न कुछ छोड़ना क्यों पड़ता है,
मुझे कुछ करने के लिए किसी से पूछना क्यों पड़ता है,
किसी से इजाज़त के लिए इतना तरसना क्यों पड़ता है,
मुझे भी पंख खोल उड़ना है,
पर मुझे उसके लिए भी झुकना क्यों पड़ता है,
हां बहुत से सवालों से लड़ना भी पड़ता है,
जवाब हो ना हो चुप रहना ही पड़ता है,
गिर कर संभालना तो दूर की बात है
मुझे तो सांस लेने के लिए भी इतना डरना क्यों पड़ता है,
अंधेरों का क्या है यहां तो उजालों में भी छिपना पड़ता है,
कहीं उड़ ना जाए हम इसलिए हमे इन ज़जीरों में जकड़ रखा है...