कल से आज में मैं, ना जाने कितना बदल गई थी,
कल वाली मैं, शायद अब नहीं रही थी,
ख्वाब कुछ अलग देखे थे तब
और हकीकत, मैं आज कुछ और जी रही थी,
बहुत सी यादों को समेट कर रखा था,
कल वाली मैं को, उसी बक्से में कैद कर रखा था,
सब दफ्न कर दिया था उस कल का मैने
और उस पल से, उस डर से एक बैर सा रखा था,
उसे भुला दूं इसलिए उससे जुड़ा हर सिरा गैर कर रखा था ,
मगर कहते हैं ना कल तो था, है, और रहेगा,
तो आज, अनजाने में इस कल से टकराना हो गया
वो जिस मैं को, मैने कैद रखा था
उसका फिर से वापस आना हो गया,
सोचा नहीं था की खुद पर वो कल आज भी हावी होगा,
मुझमें उसका डर आज भी काफी होगा,
खुद को बदल लिया था संभाल लिया था
नहीं डरती अब किसी से इस काबिल तो बना लिया था
अपने आज को उस कल से मीलों दूर रखा था,
मगर फिर भी मैंने खुद को उलझनों में क्यों पाया
उस कल से मिलकर फिर से मेरा आज क्यों डगमगाया
संभाला हुआ सब फिर बिखरने क्यों लगा
वो डर मेरा मुझे फिर से डराने क्यों लगा,
मैं फिर से वही मैं बनना नहीं चाहती थी,
उससे डर कर फिर उस कल में मरना नहीं चाहती थी,
तो सोचा इस बार उस कल को कैद नहीं करेंगे
उस कल को गैर नहीं करेंगे,
लड़ लेंगे उस डर से भी उस कल से भी,
कुछ भी हो जाए
गिरेंगे तो संभालना सीख लेंगे,
अपनी कमजोरियां से अब लड़ना सीख लेंगे,
कल की मैं से आज की मैं को
और बेहतर बनाना सीख लेंगे।।