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मैं वैसा नहीं हूँ जो तुम मुझे बनाना चाहते हो ,
और में वैसा ही क्यों बनूँ ?
जैसा तुम मुझे देखना चाहते हो,
मैं तो मैं हूँ, मैं जैसा हूँ मेरे जैसा हूँ,
तो तुम क्यों ही मुझे दूसरों सा बनाना चाहते हो?
मैं क्यों मानू कि तुम्हारी सोच ही सही है,
मैं क्यों मानू तुम्हारी 
जब मेरा अस्तित्व तो बस मुझसे ही है,
चलो मान भी लू कि तुम्हारी बात में कुछ सही होगा,
शायद मुझमे भी किसी और के जैसा कोई एक गुण होगा,
पर मैं यह क्यों मानू की वो मुझसे ज्यादा बेहतर होगा?
मैं क्योँ तोलू खुद को उससे
हो सकता है कुछ ऐसा मुझमें हो जो नहीं उसमें होगा,
जहाँ वो जाये शायद उस राह पर मेरा जाना भी कभी नहीं होगा,
क्योंकि मैं वैसा नहीं हूँ जो तुम मुझे बनाना चाहते हो,
ना ही वो जिसकी तुम जानकारी रखना चाहते हो,
मैं तो मैं हूँ तुम मुझे उसके जैसा ही क्यों बनाना चाहते हो,
मत तोलो मेरे मोल को दूजे से,
वो, वो है, मैं मैं रहना चाहता हूँ,
उससे बेहतर का नहीं पता
मगर मैं अपने से हर रोज़ बेहतर बनना चाहता हूँ,
मैं तो मैं हूँ, मैं जैसा हूँ मेरे जैसा हूँ,
मैं तो बस मुझ सा ही बना रहना चाहता हूँ,

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