ज़िंदगी गिराती है कभी कभी खुद उठना सीखा देती है
संभल जाना होता है एक बार में
क्योंकि जिंदगी बार बार संभलने का मौका नहीं देती है,
कभी रुलाती है कभी फुसफुसा कर निकल जाती है,
आड़ी टेढ़ी राह पर भी एक दुनिया बना जाती है,
यूं तो बाराबरी करने की अलग होड़ है इस दुनिया में,
फिर भी पीछे देख कर ही बस चला करते हैं,
जिंदगी हर किसी को दोस्त नहीं देती,
किस्मत से मिले दोस्त संभालने भी पड़ते हैं,
रोज़ की आवाज़ में अक्सर कुछ पीछे छूट जाता है,
कुछ आगे निकलने के लिए हम छोड़ा करते हैं,
आगे मिल बहुत कुछ जाए हमें,
क्या पीछे रह गया बस उसी का हिसाब ही गिनाते हैं,
जिंदगी हर किसी को कुछ मुफ्त नहीं देती,
ना हम मुफ्त की कद्र करते हैं,
जो साथ लाए थे वो याद रहेगा,
वो खो ना जाए बस इसी फ़िक्र का ख्याल करते हैं,
यूं मुस्कुराहट का ख्वाब के लिए अक्सर मुस्कुराना भूल जाया करते हैं,
जिंदगी खुशियां हर किसी को नहीं सोपती,
ना हर कोई ख़ुशी कबूल करता है,
कुछ अपनों को खो देते हैं
कुछ अपनों के लिए खुद को खोना सही कहते हैं,
मगर जिंदगी हर किसे को मौके नहीं देती बार बार...