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मैं डर जाती हूं, कुछ अनजान राह पर लड़खड़ा जाती हूं,
मुझे लड़ना सिखा दो मैं ना जाने क्यों खुद के लिए लड़ नही पाती हूं,
मैं घबरा जाती हूं, कुछ भीड़ में थोड़ी सहम सी जाती हूं,
किसी अनजान को देख खुद को परेशान सा पाती हूं,
मालूम हो जाता है कि कुछ तो गलत है इस माहौल में इस भीड़ में,
कहना चाहती हूं ,उसे टोकना चाहती हूं, रोकना चाहती हूं
मगर ना जाने क्यों मैं खुद के लिए कुछ कह नहीं पाती हूं,
मुझे लड़ना सिखा दो मैं अब डरना नहीं चाहती हूं,
मां ने बचपन में सब सिखा दिया, किसी से नहीं डरना कहकर मुझे बहादुर बना दिया,
मगर मैने तो उस सीख को अच्छाइयों में कहां दबा दिया,
घबराना नहीं कुछ गलत लगे तो डगमगाना नहीं,
शोर कर देना कुछ गलत लगे तो,, रास्ता बदल देना कोई पीछा करे तो,
मगर मैं तो घबरा जाया करती हूं,
क्या कहूं कैसे कहूं इसका चयन भी कहां ही कर पाती हूं,
इसलिए तो कहती हूं अब तो बस मुझे लड़ना सिखा दो मैं डरना नहीं चाहती हूं।।