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सच को थोड़ा समझ लिया तो झूठ कहाँ फसा लेगा
झूठ को थोड़ा परख लिया जो सच कहाँ कोई छुपा लेगा,
जो बदल गया वो झूठ ही होगा, क्योंकि सच तो हर पल जी लेगा
और करो बात जो झूठ कि तो वो हर पल इक झूठ को सीं लेगा।

छिपा छिपा जिसे रखना होगा, दिखा दिखा कर झूठ कई,
कभी गलत भी सही लगेगा, झूठ छिपाते वक़्त कहीं,
मगर कितना झूठ सुना लोगे, कितना सच तुम दबा लोगे,
कितना रंग उसपर चढ़ा दोगे, कितना और उसे सच सा बना दोगे,
फिर भी कहाँ सच वो बन लेगा, झूठ तो झूठ ही होगा ना,
सच सा कैसे वो जी लेगा।

तो जो हर बार दिखे वो सच नहीं, जो छिप जाये वो झूठ नहीं,
कहा जाये जो बार बार या दिखे तुम्हें हजार बार,
जरूरी नहीं वही सच होगा, और जो नहीं पता वो झूठ ही होगा,
तो थमकर एक बार फिर से उसे समझ लेना,
क्योंकि जो सच हुआ तो हर नज़रिये से जी लेगा,
झूठ ही होगा वो तो जो हर बार इक नया झूठ कोई ढूंढेगा।।

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