हे मानव !
तुम क्यू अहिंसा का मार्ग दिखाते हो,
जब खुद उस पर ना चल पाते हो ।
क्यू आचार-विचार के गीत गाते हो,
जब दुसरों के विनाश से जीवन कमाते हो ।
क्यू सदाचार के पाठ पढाते हो,
जब खुद कुछ सीख ना पाते हो ।
क्यू खुदको श्रेष्ठ दिखाते हो,
जब संसार के दूसरे जीवों साथ समझौता ना कर पाते हो।
मानवता का क्या अंश बचा तुम मे,
फिर भी क्यू खुदको मानव बतलाते हो।
क्यू आगे बढ़ने का घमंड है,
जब दौडते हुए, न्याय और धर्म पीछे छोड आते हो ।
क्यू सत्य, अहिंसा, हित छोड,
लोभ, माया, अहंकार को गले लगाते हो।
इस समाज में रेहेकर भी,
इसके लिए जी न पाते हो।
इस संसार से सब कुछ लेकर,
कुछ भी ना वापस दे पाते हो ।
क्यू खुदको श्रेष्ठ दिखाते हो।
कली ने रचा ऐसा कलयुग,
पर सोच कौन है ये कली
है कोई दूजा या बसा हमारे मन मे छल-कपट का मोह है कली|
मानव है तो मानव बन, मानवता की राह चुन
धरती पे स्वर्गीय धागे बुन।