आया जीवन में मोड़ इक ऐसा, लगा ख्वाबों को जहां ग्रहण, हो गया तन यह नाकाम, व टूट कर बिखर गया था मन।।
परिस्थिति बनी हुई थी विपरीत, अनेक रोगों ने लिया जकड़।।
कर मेरे ख्वाबों को कैद, समय गिरफ्त में लिया पकड़।।
विपत्तियों के काले बादल ने, मुझको ऐसे लिया था घेर।।
छूट रहे थे ख्वाब वो पीछे, किया समय कुछ ऐसा फेर।।
जिनकी आश में देखे ख्वाब,दूर वही मुझसे हो गए।।
थम गई मेरी कलम की धार, पन्ने वह किताबों के सो गए।।
था किमती मेरे जीवन में,।
इक वजनदार जो बस्ता।।
कलम व किताबों के बिना , हो गया बेरंग व सस्ता।।
प्रत्येक शिक्षार्थी के जीवन में, जहां शिक्षा होती सर्वश्रेष्ठ इबादत।।
होकर वहीं तन मन से विवश, रही पीछे मेरी यह चाहत।।
समय के संग संग स्वास्थ मेरा, स्तर भरपूर गिरा रहा था।।
अधुरे ख्वाबों का भय मन में, गहरा असर दिखा रहा था।।
गंभीर मेरी परिस्थिति को, लोग समझ बैठे थे खेल।।
हुआ था मन बहुत उदास, व तन कठिनाई रहा था झेल।।
बढ़ता रहा समय यह आगे, पकड़ अपनी तेज रफ्तार।।
आ गया जीवन में वह दिन, दिखे जब मुझमें अनेक सुधार।।
सोई हुई उमंग हृदय की, हौले हौले गई फिर जाग।।
जोश व जुनून की भीतर, फिर से जल उठी आग।।
देता समाज था ताने ऐसे, मनोबल जिस प्रकार जाए घट।।
सुनाए किस्से बड़े गजब के, आकर सभी ने मेरे निकट ।।
कहने लगे मंजिल न मिलेगी, अत्याधिक महत्वपूर्ण उसमें बल।।
अब रही नहीं तु काबिल, कर सके जो ख्वाबों को मुकम्मल।।
थामकर कदम में अपने सोचूं, हो रहा जो घटित होने दे।।
भूला समस्त ख्वाब तु स्वयं को, वर्तमान में ढलने दे।।
लिया गया निर्णय यह मेरा, मंजूर विधाता को नहीं मगर,।
शायद बना रखी थी योजना उसने, मेरे लिए सबसे बेहतर।।
लौट पाई ना कभी वहां, समय जो मैंने पीछे छोड़ा।।
परंतु भाग्य के इस पहिए ने, मुझ को भिन्न दिशा में मोड़ा।।
चल पड़ी मैं उसी राह, जहां कदम कदम दिखा रहा उजाला ।
फिके पड़े उन ख्वाबों को, रंगीन हौसलों ने कर डाला।।
चल कर उसी दिशा में मुझको , दि वस्तु इक विचित्र दिखाई।।
महफिल पड़ी थी वीरान, बस रखी थी कॉपी ,कलम ,व स्याही।।
करते हुए वापसी मैं सोचू, दिशा शायद नहीं यह ठीक।।
पुस्तकों का भंडार ना कोई, रखी है कॉपी व कलम बस इक ।।
झटपट बोल पड़ी वह कलम, आऊंगी भविष्य हेतु मैं काम ।।
सर्वप्रथम स्वयं तु मुझे परख, तत्पश्चात देख इसका अंजाम।।
जो पुस्तक तो खोज रही है, मुख्य उसकी मैं हूं निर्माता।।
कर विचार जो मै ना होती, पुस्तक में लेख कहां से आता ।।
मन भीतर में लगी सोचने, क्यों न इसे आजमाया जाए।।
क्यों ना कोरे इन पृष्ठों को, रंगीन कलमों से सजाया जाए।।
मन को हुआ नहीं विश्वास, कलम थाम चले जो हाथ।।
वर्षों पश्चात मुझे मिल गया, जुदा हुई उस कलम का साथ ।।
रुकी नहीं मैं इसके पश्चात् , कलम द्वारा लिखते गई मैं पृष्ठ।।
मन के समस्त विचारों को ,अब लिखती हूं मैं स्पष्ट ।।
कभी लगा जंक मेरी कलम को, पुस्तके हुई मेरी जो बंद।
उन्हीं पुस्तकों पर कलम चलाकर, आज लेख लिखना है मुझको पसंद।
उठा कलम मैं अब लिखती हूं, तन मन के पूर्ण परिश्रम से।।
मन के विचारों को हूं दर्शाती, मैं अनेक रचनाओं के माध्यम से।।
इसी कलम ने दी है हिम्मत, करने हेतु सपने साकार।।
लिखती हूं लेख व , लिखती रहूंगी, बनकर छोटी सी एक रचनाकार।।
केवल मेरा नहीं यहां पर, आता सभी का वक्त बुरा।।
डरकर इन बाधाओं से आप, छोड़े नहीं सपनों को अधूरा।।
इस जीवन में आते हैं मित्रों, गिराने मनोबल कितने ना जाने।।
करते रहे प्रयास निरंतर, इन बाधाओं से हार न माने।।