क्षैतिज पटियों द्वारा निर्मित, सुशोभित अशोका चक्र जहां।।

पिंगली वेंकैया कि दिव्य कल्पना, हुआ जो राष्ट्रीय ध्वज निर्माण यहां।।
तीन रंगों में हुआ आवंटित, सर्वप्रथम सजा है रंग केसरिया।।
करें साहस का दिव्य प्रदर्शन, प्रतीक उमंग का कहा गया।।
मध्य सजा श्वेत रंग, प्रतीक शांति का कहलाता है।।
 सादगी से परिपूर्ण रंग यह, सत्य का बोध कराता है।।
 प्रतीक हरियाली का कहलाया, तीजा रंग है सुलभ हरा ।।
 तिरंगे में लहर लहर लहराए , देवे संकेत उर्वरता भरा।।
 मध्य करे है चक्र निवास, जहां तिलिया चौबीस व रंग नील ।
 बन कर्मशील करे है प्रमाणित, विजय पथ पर भारत प्रगतिशील।।
 यह तो हुआ वर्तमान का वर्णन, सुनाती हूं व्यथा भूतकाल की।।
 भगिनी निवेदिता प्रथम ध्वज निर्माता, चित्रकला जिसकी बेमिसाल थी।।
 पट्टीयां तीन जहां सजी, रंग हरा, पीला व लाल।।
 अष्ट कमल व सूरज चांद सजे, शब्द वंदे मातरम किए कमाल।।
 बीकाजी कामा दूजी निर्माता, सहयोगी जिसके अन्य क्रांतिकारी।।
 परदेस में ध्वज लहर लहर लहराए, रंगत भारतवर्ष की सवारी।।
 तिरंगा मैडम कामाजी का , प्रथम ध्वज समान देता संदेश।।
 सजा मात्र कमल इक, सप्त सितारे कर गए प्रवेश।।
 राजनीतिक संघर्षों की बढ़ती रफ्तार, दिलचस्प मोड़ एक लेकर आई।।
 तृतीय राष्ट्रीय ध्वज हुआ निर्मित, फहराए डॉ एनी बेसेंट व तीलक भाई।।
 लाल व हरी पट्टीयां जिसमे, जड़े अनेक सितारे थे।।
 श्वेत अर्धचंद्र व यूनियन जैक निर्मित ध्वज , मध्य सभा में उतारे थे ।।
 आई पिंगली वेंकैया की बारी, चौथा ध्वज निर्माण किया।।
 छाया हरा वह लाल रंग , प्रतिनिधित्व जो हिंदू मुस्लिम का किया।।
 धवज सौंप गांधी के हाथों में , बैठक बिठाए हुआ संशोधन।।
 श्वेत रंग दिया रंगों में जोड़, मध्य प्रगतिशील चरखा गया बन।।
 इतिहासिक स्मरणीय वर्ष कहलाया, राष्ट्रीय ध्वज प्रस्तावना पाई स्वीकृति।।
 अजब शान होती थी प्रतीत, भारत वर्ष नित्य करता प्रगति।।
 देश की बेड़ियां गई खुल , स्वतंत्रता आई आंगन में।।
 चरखे ने पाया विश्राम, दस्तक दी सम्राट अशोक चक्र ने।।
 दिव्य भारतीय संविधान सभा में, चरखे से बेहतर चक्र को माना।।
 सार जो जीवन का बतलाया, निर्देशों द्वारा गया पहचाना।।
 हुआ भव्य गणतंत्र निर्माण, अत्यंत कड़े निर्देश मिले।।
 अनेकों दस्तावेजों पर आधारित, खादी, सिल्क,काटन आधार मिले।।
 राज्य प्रशासनिक सेवा वह स्थल, सर्वोच्च तिरंगा जो फहराए।।
 ध्वज संहिता कि अनेकों संसोधन, सामान्य नागरिक जो हट में आए।।
 संहिता अन्य भागों में विभाजित, विवरण राष्ट्रीय ध्वज हेतु सामान्य।।
 दूजा भाग दिया निर्देश, बड़ी संगठनों वह संस्थानों कि शान।।
 पाकर शैक्षणिक संस्थानों ने अधिकार, उत्साहपूर्ण किया ध्वजारोहण।।
 सूर्यास्त पश्चात नहीं उपयोगी, मात्र हो सूर्योदय में प्रदर्शन।।
 प्रदर्शन हेतु राष्ट्रीय त्यौहारों में, अनुमति भारतीय संविधान द्वारा पाई।।
 इक उघोगपति कि दायर याचिका, भव्य परिवर्तन संहिता में लाई।।
 ध्वज आरोहण जन जन का अधिकार , समस्त भारतवासियों हेतु नहीं वर्जित।।
 शेष माध्यम अन्य नागरिकों हेतु, हो जहां प्रेम मां भारती को समर्पित।।
 भारतीय नागरिक पाया अनुमति, राष्ट्रीय ध्वज लहराने की।।
 गरिमा व सम्मान रख सिर आंखों पर, आई घड़ी हिंदूसतानी कहलाने की।।
 स्पर्श ना हो जमीं व जल में , बात है ध्वज सम्मान की।।
 मात्र हो पुष्प पंखुड़ियों से सजावट, रखना लाज संविधान की।।
 परंपरागत नियमों द्वारा हो फहराव, राष्ट्रीय धरोहर की बात है।।
 मात्र राष्ट्रीय इमारत में, टिकता सूर्योदय पश्चात् है।।
 आए जो घड़ी प्रदर्शन की, केसरिया रंग सदा रहे सर्वोपरी।।
 होवे जुड़वा ध्वज जहां प्रदर्शित, ठहराव अत्याधिक बढ़ाए न दुरी।।
 जहां हो अन्य देशों संग भागिदारी, सर्वश्रेष्ठ कहलाए अन्य ध्वजों में।।
 सर्वप्रथम लहर लहर लहराए, उतराव रहे सबसे अंत में।।
 ज्यों बैठकों में होगा ध्वज प्रदर्शित, मिले स्थान वक्ता की दाहिनी ओर।
 लहराए जो गर्व से दिवारों पर, केसरिया बना रहे उंचाई कि ओर।।
 तिरंगा जो समारोह से गुजरे, उपयुक्त प्रस्तुत करें सलामी।।
 ध्वज समक्ष पाएं जो स्तंभ, गुनगुनाए राष्ट्रीय गान हिंदूस्थानी।।
 राष्ट्रीय वाहनों पर होती सजावट, राष्ट्रीय सेवक करें जो प्रवेश।।
 यात्राओं में बनकर चले साथी, पाकर संविधान द्वारा आदेश।।
 शोक समारोह में झुकाए अर्धशिष, बन सेवक का अंतिम हमसफ़र।।
 निभा प्रेम पूर्वक दायित्व देता विदाई, अमर भारतीय सेवकों को बनाकर।।
 समापन का आए जो विकल्प, अग्नि व गंगा में होवे विसर्जन।।
 जहां क्षतिग्रस्त हो जाए तिरंगा, उचित सम्मान द्वारा होवे दफन।।
 प्रिय देशवासियों होती है समाप्त, मेरी वतन समर्पित शब्दों की सीमा।।
 अल्फाज कैसे करूं तैयार, गाए जो भव्य रूप में महिमा।।
 मिलकर देश भक्तों की कतार में, स्वर मैंने लिख डाले हैं।।
 धर्म पंथ कर रौशन इसने, भारतवर्ष में किए उजाले है।।

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