Photo by Nathan Cowley: pexels

जब सुन्न पढ़ा हो मन, दुनिया के जज़्बातो से,
जब फर्क नहीं पढता मन को ना तानो से ना बातों से,
अंतर्मन को आवाज़े जब कुछ ना सुनाई देती हो,
व्यकुल बैठे चिंतित मन को तन्हाई दिखाई देती हो,
जब मन के अंदर सन्नाटे अंबर से ज़्यदा गहरे हो,
जब मुखोटो के पीछे इंसानों के अनगिनत चेहरे हो,
डर लगता है अब मन को, किसी से कुछ भी कहने मे,
जंजीरे तोड़ दी है अब, रही कोई कसर ना कुछ सहने मे,
सैलाब उमड़ रहे हो मन मे जब सेकड़ो संतापो के,
कांप चूका हो जब अंतर्मन सहे गए अपमानो से,
एक एक करके जब सारे सब्र के बाँध टूट गए,
आँखों से निकले अश्रुओ से समंदर भी पीछे छूट गए,
थक कर बैठ गए हो जब विफलताओं के किनारो पर,
सर ठोक ठोक कर फोड़ लिया हो जब घर की दीवारों पर,
आवाज सुनाई तब मन के महासागर की देती है,
सन्नटो के बिच मे खुद को चुप रहनो को कहती है।

.     .     .

Discus