Photo by Harsh Gupta on Unsplash
निकला पड़ा हूं चंद ख्वाहिशें, चंद ख़्वाब लेकर..
लौटूंगा शहर तेरे,तेरे हर सवाल का जवाब लेकर..
हालात थोड़े ख़राब है,पर जिंदगी मेरी अंधेरी नही..
हाथ बधे है तो क्या हुआ,मेरे पैरों में बेड़ी नही..
जानता हूं इस दौड़ में कई बार गिरुंगा कई बार हारूंगा..
पर मिल ना जाए जब तक मंजिल,हार नहीं मानूंगा..
हारना मंजूर है पर कोशिश करूंगा तो सही..
छीन लाऊंगा वो मुकद्दर से
जो मेरी किस्मत में नही.
बड़े गुरुर से ठुकराया था उसने मुझे ,
लेकिन अब प्यार नही मांगुगा..
मिल ना जाए जब तक मंजिल,हार नहीं मानूंगा..
गिरके उठूंगा में फिर से मैं और रार नई ठानूंगा
चलूंगा पथ जैसा भी हो,परिवर्तन की राह नही मांगूंगा
मैं मंजिलों के रास्ते खुश–गवार नही मांगूंगा
मिल ना जाए मंजिल तबतक हार नही मानूंगा, मैं हार नही मानूंगा....