कड़कती ठंड में रजाई में सिकुड़कर लेटे हुऐ,
और हाथ को मुट्ठी भर समेटे हुए, मुझे अचानक याद आ गए बचपन के वो
पल जो लौट के नहीं आने वाले हैं कल,
याद है ना वो माँ के हाथों से खाने का बहाना,
वो पापा की अँगली पकड़कर आना जाना,
ना कोई फ़िक्र ना को चिंता बस वो खेलकूद और खिलौना,
मम्मी पापा के डांट में हुपे हुए प्यार को पाना,
वो बेफिक्र होकर तितलियों के पिछे भागने की चाहत,
वो बहते पानी में कागज़ की नाव छोड़ने की शरारत,
वो छोटी-छोटी बातों पे रो देने की आदत,
बचपन के सबसे अच्छे दिन वो स्कूल की खट्टी-मीठी यादें,
दोस्तो की बहुत सारी बातें,
वो पढ़ाई के बीच में जब चोरी छुपे खाते,
एग्जाम की टेंशन में जब रात-रात भर नहीं सो पाते,
वो गर्मियों की छुट्टियों का बड़ी ही बेसब्री से इंतजार,
वो घूमने जाने के लिए हमेशा तैयार,
वो मस्ती से भड़ी रंगों वाली होली,वो फुलझड़ियों वाला त्योहार,
कोई पूछे तो कहूंगी बचपन लौटा तो यार,
हो सके तो फिर से बच्चा बना दो न यार,
भेज दो ना उसी मासूमियत में जहाँ जलन,
नफरत इन सब एहसासों से हम थे अंजान,
भले-बुरे की जब ना थी कोई पहचान,
जात-पात भेद ना था जब सब लगते थे एक समान,
धुंधली हुए वो सभी यादें दिखावे की हंसी में आज खो गई है मेरे बचपन की मुस्कान, कोई तो लौटा दो मेरे उस बचपन की पहचान,
काश!फिर से बच्चा बन जाऊं अब बस यही है अरमान।