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थम ना जाए सांस कहीं किसी के इंतजार में, ये रात कट रही
आहिस्ता-आहिस्ता किसी के इंतजार में,
अंधेरों को कहाँ है रौशनी की मौजूदगी का एहसास,
एक मिलन की तमन्ना ही बहुत है शब् गुजारने को
किसी के इंतज़ार में,

जाने कब ख़त्म हो जाए उल्फत का सफर,
रौंद कर दिल के हसरतों को कब कौन जाए गुज़र,
बिखरी हुई जिंदगानी की आखिर किसको है कदर,
इन बेजान जिस्मों में अब कहाँ होती है रूह की बसर,
कोई तो आवाज सुने इस टूटे हुए दिल की भी,
सुनाने को राज़ ए दिल अपना बैठे हैं किसी के इंतजार में,

जैसे आंखों पे घिरी हो पलकों की चादर,
कितने अनगिनत अश्क छुपे हैं इनमे जैसे कोई गहरा सागर, फतक़ एक उम्र तो काफ़ी नहीं सारे अश्क बहाने के लिए,
कितने ही जतन करने परते मन को मनाने के लिए,
मन मान भी जाए तो क्या, नासमझ धड़कन आज भी धड़क रही किसी के इंतजार में,

बेचैन हो उठता मन गर कोई आहट भी सुन ले तो,
सिलसिला हम मुंतजिर का आखिर कहाँ पे खत्म हो,
ना सूरत से देखा है, ना सीरत से जाना है उन्हें,
बेनाम रिश्ता है मगर सब कुछ ही तो माना है उन्हें,
लब्जों की जरूरत नहीं, ये चाहत तो खामोशी से ही बयां होती है, मानो तो बस एक मिलने की चाह भर से ही दुनिया सवर जाएगी मेरी किसी के इंतजार में,
यूँही बैठ बैठ ख्वाहिशों की चौखट पे पूरी ज़िन्दगी गुज़र जाएगी मेरी किसी के इंतजार में।

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