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दो चेहरे ऑफिस में थोड़े अल्हड़ से हैं, कभी अजीब सी हरकत कर देते हैं,

कभी किसी बात पे हताश, फिर उसी बात पे हँसी मज़ाक भी कर लेते हैं,
झूठ बोलके तो कभी मज़ाक में करते हैं सामने वालों को परेशान करने का खेल,
पर हर बार उनका प्लान हो जाता फेल,

अपनी धुन में रहते कभी,
कभी पूरी दुनियादारी जाननी होती है इनको,
ज़िन्दगी जीने वाले कभी फ्री नहीं हो सकते ये कौन समझाए इनको,

हर रोज़ बड़ी शान से ऑफिस आते हैं
मगर जाने में जो ज़रा देर हो जाए तो चिढ़ जाते हैं,
वैसे तो खुलके हर बात बताते हैं, फिर भी लगता है कुछ छुपाते हैं,
खैर गुज़ारिश करो तो कोई बात जल्दी ही मान जाते हैं,

मगर किसी भी बात पे चाहे कितनी भी ऐंठ दिखा लें
रहेंगे फिर भी ये वही सदरपुर छलेरा वाले,
कभी दोनो एक दूसरे का मज़ाक उड़ाते हैं,
फिर कभी किसी तीसरे का मज़ाक बनाने में दोनों एक साथ शामिल हो जाते हैं,

कभी शाखा कभी अलग अलग सामाजिक कार्य के बहाने देते हैं,
फिर अक्सर साथ में छुट्टी भी कर लेते हैं,
और फिर कभी किसी ज़रा सी बात पर एक दूसरे से लड़ लेते हैं,

कभी हँसी, कभी थोड़ा बवाल,
मगर मन में कोई धोखेबाज़ी नहीं, नाही कोई चाल,
अजीब हैं, मगर दिल के साफ भी,
भरोसा कर सकते हो, ये एक चीज़ हैं ख़ास भी,

थोड़ा बचपना, थोड़े दोस्ती के रंग,
पल में झगड़ते, फिर हो जाते हैं संग
कभी लगता पूरी तरह समझ गए इन्हें,
कभी लगता अभी अनजान हैं,
कोशिश रहेगी और जानने की,
अभी तो बस थोड़ी ही जान-पहचान है।

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