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खुशियों की महफ़िल सजाकर
हम रात भर चैन से सोते है
क्योंकि वह सरहद पर जागकर
दिन रात पहरेदारी करते है।
ना परिवार का प्यार ना सुकून कि नींद
फिर भी शिकायत नहीं करते है।
जब उनके परिवारों को मायूस देखती हूं।
तब उनकी याद आ ही जाती है।
हर त्योहार मै वह कहते है
बेटा अगली बार ज़रूर आऊंगा।
तुम्हे कंधे पे बिठाकर
पूरा शहर घुमा लाऊंगा।
आखों मै सपने समाए जो बचे
अगली बार का इंतज़ार करते है
उन बच्चों को देखती हूं
तब उनकी याद आ ही जाती है।
राखी तो वह भी बंधवाते है
वादा तो वह भी तोड़ते है
क्यूंकि सरहद पर वह तेनाद होकर
करोड़ों बहनों की रक्षा करते है।
शाहिद भाइयों की मुस्कान विरासत मै
लेके जो बेहेने इनको भूल जाती है
ऐसी बहनों को देखती हूं तो
उनकी याद आ ही जाती है।
लाल जोड़े मै उनकी दुल्हन
नजाने कितने सपने सजती है
जल्दी आऊंगा वह कहके जाते है
दुल्हन इंतज़ार करती रहती है
जिन दुल्हनों का इंतज़ार उनके पति
के ज़िन्दगी के साथ ख़तम होता है
ऐसी विधवाओं को देखती हूं तो
उनकी याद आ ही जाती है।
बचपन मै पटाखों से डरके जो
मा के पलू मै छुप जाते है
वह बड़े होकर जाबाज़ बनके
परमाणु से भी लड़ जाते है।
अपनी अर्थी उठवाने के सपने देखती
जो मा उनकी अर्थी संजोडती है
उन माओं को देखती हूं
तब उनकी याद आ ही जाती है।
पिता के कंधो के बोझ के साथ
पूरे देश का वह बोझ उठाते है
बोझ नहीं ज़िम्मेदारी समझकर
वह जान देकर भी फ़र्ज़ निभाते है।
मस्ती के लिए भाइयों से लडने वाले
देश भर के भाइयों को जो बचाते है।
उनके भाइयों को देखती हूं
तो उनकी याद आ ही जाती है।
यार तो उनको कितनो ने माना
उन्होंने बधुको को ही यार माना
अपने शरीर को मिट्टी मै मिलाकर अपने
नाम को पथर की लकीर वह बनाते है
मायूस हो जाने के डर से
जिनको हम याद नहीं करते है
मिट्टी को बलिदान की गवाही देते देखती हूं
तो उनकी याद आ ही जाती है।