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असल जीवन सामाजिक जीवन ही कहलाता है,क्योंकि एक मनुष्य ही केवल समाज में रह सकता है , समाज को बना सकता है , और उसे चला भी सकता है। तो इन तथ्यों से सवाल यह उठता है असल नायक कौन है? 1 जैसा चलचित्रों में दिखाया जाता है वो गोरे, चिकने और अच्छे देखने वाले है या वो हैं जो मिल कर इस समाज को चलाते है?

हालांकि चलचित्रों की कहानियां असल जीवन पर ही आधारित होते है,परंतु चलचित्रों में नायक को अतिशक्तिमान दिखलाया जाता है उसमे कितनी सच्चाई है? इन्हीं कुछ सवालों के जवाबों के शोध पर मेरी ये कहानी है। 

ये कहानी है एक पिता और उनके पुत्र की जो को काफी जिज्ञासाओं से भरा एक लड़का और उसकी छोटी बहन भी है, जिनके नाम है - कृष्णा और राधा। कृष्णा के मन में ऐसे ही सवाल उसे परेशान करते है और वो अपने पिता से ऐसे ही सवाल करता है , जिससे परेशान होकर उसके पिता ने आज उसको कुछ बातें बताने का फैसला किया है। उसके पिता ने दर्शनशास्त्र विषय से एम ए की अपनी डिग्री पूरी की है। अतः वह ज्ञान से काफी समिल्लित और भरे पूरे एवम शांत स्वभाव के व्यक्ति है। इसीलिए उन्होंने अपनी कक्षा में अपने दोनो बच्चो को नीचे बैठाया है और खुद भी नीचे बैठे पहले ध्यान करते है जिससे की बच्चे की एकाग्रता बनी रहे और ध्यान से सुनने का और समझने का संयम हो।

अमन (कृष्णा के पिता) - इस धरती पर अच्छे और बुरे दोनो प्रकार के व्यक्ति है, लेकिन किसे अच्छा कहते है और किसे बुरा यही फैसला करता है को कौन नायक है और कौन खलनायक। जैसे की कोई लड़का पढ़ने में बहुत अच्छा होगा आपलोगो के कक्षा में लेकिन अगर वह लड़का किसी से झगड़ा करता है और पकड़ा जाता है तो पूरे स्कूल और कक्षा और अध्यापकों के नजर में वह एक झगड़ा करने वाला यानी खलनायक लड़का के रूप में हो जायेगा क्योंकि स्कूल के समाज में वह गलती करते पकड़ा गया लेकिन लड़ाई स्वयं से नही की जा सकती , दूसरे लड़के ने भी उसे मारा होगा लेकिन उसे किसी ने नही देखा तो वह नायक है , क्योंकि उसने बदमाश लड़के की शिकायत की प्रधानाचार्य से तो वह उनकी नजर में एक अच्छा लड़का यानी नायक हुआ क्योंकि उसने माफी मांग ली। तो इससे हमें जो दिखता है जरूरी नही की वह सच ही हो दरअसल फिल्मों में नायक दिखाना होता है इसीलिए उसे अच्छा दिखाते है और जिसे खलनायक दिखाना होता उसे बुरा दिखाते है । और हम वही देखते है जो हमे कैमरा से शूट किया हुआ फिल्म देखने को मिलता है, अतः उसी को सच भी मान लेते है ,लेकिन जो कैमरे में अच्छा हो जरूरी नही की असल जीवन में भी अच्छा होगा , क्योंकि हर मनुष्य में अच्छाई और बुराई दोनो होती है , और वह काल और स्थान पर बदलते रहती है ,जो आज अच्छा h वह कल गलत भी हो सकता है , क्योंकि अभी तक हमारी आंखों ने सिर्फ उसकी अच्छाई देखी है, हमारी आंखें ही हमारी कैमरा है , जब उसकी बुराई का पता चलेगा तो वही इंसान खलनायक बन जायेगा। 

इन बातों को सुनने के बाद कृष्णा के मन के सारे सवालों का जवाब मिल गया और वह संतुष्ट हुआ।

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