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भारत की शिक्षा व्यवस्था भारत की अपनी संस्कृति से अलग ब्रिटिश संस्कृति पर आधारित है। भारत के धरोहर ग्रंथों का अध्ययन कही पीछे छूट गया है। हमारी संस्कृति की पहचान हमारे वेदों से है। जो की कोई पुस्तक नहीं बल्कि ग्रंथ है जिनमे लाखों ज्ञानजन कहानियां है जो जीवन से लेकर विज्ञान और बाकी चीज़ों का भी मूल अध्ययन है। एक उदाहरण के द्वारा में अपनी बातों को स्पष्ट करना चाहूंगा। जैसे की हमारे ग्रंथों में एक प्रसिद्ध ग्रंथ है भगवदगीता जिसमे द्वापरयुग में कुरुक्षेत्र में हुए पांडव और कौरव पुत्रों के बीच हो रहे युद्ध की कहानी है। जो महर्षि वेद व्यास द्वारा भगवदगीता में वर्णित है।जिसमे स्वयं हमारे देवता कृष्ण की अवतार में अर्जुन के साथ उस युद्ध मे प्रस्तुत किए गए है। लेकिन क्या सही में भगवान कृष्ण आए थे? 

क्या सही में यह युद्ध हुआ था इसका साक्ष्य प्रमाण तो नही है, लेकिन इस कहानी से हमें कई ज्ञानजन शिक्षाएं एक साथ मिल जाती है।जो की पूरा एक मानव जीवन का अध्यन है और आधार है।जैसे की कहा गया है की जिस प्रकार अर्जुन का मनोबल टूट जाता है युद्ध करने से पूर्व तब कृष्ण उन्हें कर्मयोग की शिक्षा देकर प्रेरित करते है, उसमे अर्जुन के मन के समान ही हमारा मनोबल भी टूटता है तब अंतरात्मा रूपी कृष्ण हम प्रेरित करता है , अर्थात जिस तरह अर्जुन कृष्ण की बातों को सुन कर युद्ध के लिए तैयार हो जाते उसी प्रकार हम भी अपनी अंतरात्मा की बात सुननी चाहिए और मन को प्रेरित करते रहना चहिए।तभी रथ रूपी शरीर कार्य करेगा। अतः हमें अपना कर्म करना चाहिए। 

अर्जुन- क्या युद्ध करना और लोगों को मरना ही हमारा कर्म हो सकता है? तो कृष्ण इसका उतार देते हुए कहते है की पहले मनुष्य शुद्र रूप में अज्ञान की अवस्था रूपी जन्म लेता है, फिर जब वो ब्रह्मचर्य(student) का पालन करके धर्म पुरुषार्थ को प्राप्त करता है तो उसके पास अर्थ(पैसे) आते है जिससे वह वैश्य धर्म को प्राप्त करता है। इसी प्रकार तुमने युद्ध विद्या सीख कर क्षत्रिय धर्म को प्राप्त कर लिया है तो उस विद्या के अनुसार अपने धर्म के अनुसार कर्म करो। 

इस पर कई विचारकों का यह आलोचना रही हैं की युद्ध कर्म कैसे हो सकता है , परंतु यह सच युद्ध के नियमो की वजह से वह एक कर्म है, की जैसे सुबह उठ कर अपना नित्य कर्म करो फिर कुछ समय तक लगभग 6 से 7 घंटे का युद्ध हुआ और संध्या काल होते ही अपने घर जाओ , फिर अगले दिन यही और ये 18 दिन तक चला तो ये कर्म रूपी ही है अब अर्जुन को ये कर्म कर्म था क्यूंकि वह क्षत्रिय थे तो वह अपने कर्तव्य से पीछे नहीं हट सकते। 

ऐसे बहुत सी ज्ञानजन जीवन प्राप्ति शिक्षा है , जो पाश्चात्य शिक्षा प्रणालियों में कही खो गया है। हमे अपनी संस्कृति और शिक्षा पर पूर्ण विश्वास होना चाहिए, और उन्हे कभी बदलना नही चाहिए।

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