विकास के सतत् रूप को ही सतत् विकास कहते हैं , अर्थात ऐसा विकास जो हमारे पीढ़ियों को विकासशील बनाए एवं उसकी सत्ता कायम रहे एवं पीढ़ियों के लिए भी लाभदायक हो। जिसे लोग वर्षो तक उपयोग कर सके, एवं उससे सिख सके , अतः यही सतत् विकास है। 

उपयोग करने के कई कारक है, जैसे उन चीजों को नव निर्मित करके उपयोग कर सके , अतः संछेप में जिसको नव निर्मित किया जा सके। सतत् विकास की मूलतः व्याख्या वैसे तो हमे विज्ञान में ही पढ़ने को मिलते है , लेकिन इसका एक दार्शनिक रूप भी है , जो गीता के मूल उपदेश (निष्काम कर्म) में भी पढ़ने को मिलता है , जिसमे भगवान् विष्णु ने छत्रिय अर्जुन को युद्धास्थल पर बतलाया है।

अतः विज्ञान का उदय द्वापर युग के पश्चात हुआ है , इससे हमे ये अनुभूति होता है की यह गीता का ही विस्तार है।

निस्काम कर्म के बारे में कृष्ण कहते है की मानव को निष्काम होकर कर्म करना चाहिए , जिसमे अशक्ति की भावना हो , अतः इसे वह कर्मफल की कल्पना , कामना, उससे मिली उत्साह एवं शोक से दूर रह सकता है। इस पर अर्जुन पूछते है उनसे प्रभु ऐसा कौन सा कर्म है जिससे हम परमानंद की प्राप्ति हो सके। इसके उत्तर में कृष्ण उन्हें लोक संग्रह करने को कहते है। अतः ये लोक संग्रह क्या है? ऐसा प्रश्न पूछे जाने पर अर्जुन के द्वारा तो श्री कृष्ण इसके उत्तर में इसकी व्याख्या करते है , जिसमे सतत् विकास की झलक दिखती है।

लोक संग्रह का शाब्दिक अर्थ विश्व कल्याण, राज्य कल्याण, राष्ट्र कल्याण एवं जगत कल्याण से है। कहते है की ऐसे कर्म करो जिससे प्रकृति, जीव , मनुष्य , सजीव, अजीव, सबको एक समान लाभ प्राप्त हो सके , एवं किसी का नुकसान भी न हो सके। अतः एक शब्द में कहे तो सार्वभौमिक सुख को ध्यान में रख कर कर्म करना चाहिए, जिसको व्याख्या हमे विवेकानंद के दर्शन में भी देखने को मिलता है। इससे अर्जुन कहते है की क्या भूखे को खाना खिलाना , जरूरतमंदों को मदद करना ही लोक संग्रह है? इसके उत्तर में कृष्ण कहते है की नही इससे बस आपकी परोपकारी भाव दिखते है। अतः इसके पीछे का स्वार्थ होता है , की जरूरतमंद हमारी आदर सत्कार एवं मेरे नाम की वाहवही करेगा , जिससे की गांव , कस्बे , एवं इलाके में आपका नाम होगा , अतः ये सब हम नाम कमाने या अपने मन की खुशी एवं शांति के लिए करते है। अतः हम इसे निष्काम कर्म या लोक संग्रह नही कह सकते। तब संग्रह का असली मतलब क्या है? इसका उत्तर उदाहरणों से स्पष्ट किया जा सकता है , जैसे की साइकल का अविष्कार, सौर्य ऊर्जा की खोज, बिजली का उत्तपादन, विद्यालयों का निर्माण, सड़क का निर्माण , अनाथालयो का निर्माण, वृद्धाश्रम का निर्माण , इत्यादि ही लोक कार्य  अतः यही लोक कल्याण , एवं लोक संग्रह कहलाता है। वातानुकूलक, शीतकयंत्र, जीवास्म ईंधन सहित वाहन,कारखाने, इत्यादि के अविष्कारों से जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, विश्व समताप का बढ़ना(ग्लोबल वार्मिग), हरित गृह प्रभाव, ओजोन अवक्षय,इत्यादि एवं प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है , जिससे सजीव एवं निर्जीव दोनो के लिए हानिकारक है। अतः ऐसा अविष्कार या विकास सतत् नही होता, अतः इस प्रकार से सतत् विकास लोक संग्रह से निकाला एक रूप या भाग।

.    .    .

Discus