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त्राहि त्राहि मची जब
मौत का समा बंधा था
ढहते मकान
खिसकती पहाड़ियां
रोता आसमां
उफान पर नदियां
गिरते मंदिर
दबते लोग
मानो भगवान भी उस वक्त अंधा था
उझड़ रहा परिवार कही
बिखरी सी हर सांस थी
जिंदगी का भरोसा नहीं
भगवान से भी न आस थी
घर गए
ठाठ बाट गए
गया किसी का परिवार ही
विकास की राह पर अग्रसर था हिमाचल
बिखर गया इक पल की बौछार में
मैं तो तब निशब्द हुई
जब पूछा एक नन्ही जान ने
क्या हम भी मर जायेंगे
इस भरी बरसात में
नाश हुआ हर चीज का
जो हमको आधुनिक बनाती थी
कैसी ये पहल थी
प्रकृति ने जो चलाई थी
जो तोहफें दिए प्रकृति को हमने
क्या उसने आज हमें लौटाया है
क्या हम ही है जिमेदार इसके
जो मासूम लोगों का खून हमने बहाया है
इंसान तो रोए ही
रोया सारा जहान यहां
हिमाचल रोया भारत रोया
रोया जर्रा जर्रा यहां
टूटी सड़के
टूटा रास्ता
टूटा हुआ हर मंजर था
नंदियों का क्या कहना
उस वक्त एक नाला भी समंदर था
दशकों पीछे भले ही चला गया
लेकिन फिर से शुरू कर दिया उठना
लक्ष्य की प्राप्ति की ओर
फिर से बढ़ना
तार तार हुई चीज़ों को
जोड़ते हुए
जारी विकास का धागा हैं
देखो आज फिर हिमाचल जागा है
देखो आज फिर हिमाचल जागा है
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