रात के लगभग १२ बजे थे। बस्ती पूरी सुन्न लग रही थी। बस बीच बीच में कुत्तों के भौंकने की आवाजे आ रही थी। लेकिन थका हुआ हिमेश अपने कमरे में अपना एक पैर ऊपर और एक पैर नीचे फर्श पर रखकर कुर्सी पर बैठा था। शर्ट के उपरके तीन बटन खुले, और हाथ में शराब का ग्लास था जिसमें लगभग दो घूंट शराब बची थी।
"वो पवित्र उसका बसेरा है जहां।
सारे श्रापोंका तोड़ कैद है वहां।
वो पवित्र जो सना है मिट्टी से।
उसकी गोद में है टुकड़ा जो टूटा है जीवन से।
समायी है शक्ति उस टुकड़े में संभव किया जादूगरों ने।", हिमेश बस यही पंक्तियां अपनी आंखे बंद करके धीमी और थकी आवाज में दोहरा रहा था।
हिमेश ने धीरे धीरे अपनी आंखे खोली।
"आखिर क्या अर्थ है इस कविता का।", हिमेश ने कहा। और एक घूंट पीकर कुर्सी से उठा।
पास के टेबल पर रखी अपनी सारी वस्तुएं और लेख को देखकर हिमेश ने निराशा से कहा, " लगता है मुझे इस कविता का अर्थ समझने के लिए फिर से सबकुछ पढ़ना और समझना पड़ेगा।" और हिमेश अपने हाथ को दीवार पर जोर से मारकर दबी आवाज में चिल्लाने लगा।
"पापा!", धीमी आवाज दरवाजे की ओर से आई।
"हांs बेटा", हिमेश ने अपनी आंख और मूंह पर से हाथ फिराकर कहा। हिमेश की आवाज अब एकदम नर्म और कोमलता भरी थी।
"पापा! मेरे ख़्याल से अब आपको सो जाना चाहिए। रात बोहोत हो चुकी है।", पारस ने कहा।
"सो जाना चाहिए? हां! हां! मेरे ख़्याल से सो जाना चाहिए।", हिमेश ने रुकी रुकी आवाज में और यह वहा नजर फिराते हुए कहा।
पारस जाने लगा लेकिन उसी वक्त हिमेश ने उसे बुलाया, "पारस बेटा! यहां आओ।" पारस अपने पापा के पास आया।
"पारस बेटा!", हिमेश ने कहा।
हिमेश के मूंह से निकली शराब की बदबू की वजह से पारस ने अपने नाक पर हाथ रखा।
उसी वक्त हिमेश ने भी यह देखकर अपने मुंह पर हाथ रखकर कहा, "सॉरी, सॉरी!" और फिर आगे कहा, "देखो पारस बेटा तुम्हारे सिवा मेरा कौन है इस दुनिया में? क्या कोई है, बताओ? देखो, तुम बस अच्छे से पढ़ाई करना हां। मैंने तो अपनी पूरी जिंदगी बस अपने सपनों के लिए बीता दी।" हिमेश अब निराश होकर सोच में पड़ गया। मानो जैसे उसने एक पल में अपना सारा अतीत याद कर लिया हो।
"पापा मैं जानता हूं आपने जो भी किया बस मेरे भलाई के लिए ही किया। मैं आपके साथ हूं हमेशा। अब आप आराम करो।", पारस ने अपने पापा से कहा।
अब हिमेश की आंखों में आसूं आने लगे। आसूं पोंछते हुए हिमेश ने कहा, "अच्छा, तो तुम भी आराम करो और मैं भी आराम करता हु।"
इतना कहते ही हिमेश वही फर्श पर अपना तकिया लेकर सो गया। और पारस दूसरे कमरे में चला गया।
१७ जून २०२२ ( सुबह )
गांव की कच्ची सड़क के एक तरफ एक सीमेंट का ब्लॉक था। उसपर खड़े होकर सुंदर अपना सेल्फी कैमरा सेट कर था। सुंदर एक पत्रकार था। उसका ऑफिस गांव से थोड़े ही दूर शहर में था। शहर का नाम कोपरगांव था।
अपना कैमरा सेट करने के बाद सुंदर ने कहा, "तो जनताss ओह सॉरी! तो गाइज यह है मेरा पहला व्लॉग। तो देखो मेरे पीछे सड़क है। सड़क के इस पार और उस पार छोटे से पाट है। जिसमे से पानी बहता है। जिसका पानी खेतों के लिए इस्तमाल किया जाता है। हम बचपन में इसमें ही नहाते थे, तैरते थे वो भी बिना चड्डी के। हांss हांss हांss!!!" और हंसने लगा। "लेकिन आज यह पाट सूखे है। चलो आगे चलते है।"
अब सुंदर गली से गुजर रहा था। दायनी ओर एक घर था और बाई ओर एक बड़ा सा खड्डा। खड्डा पूरा सुका था। यह खड्डा बारिश में और जब पाट को पानी आता था तभी भरता था।
अब आगे जाकर सुंदर अपने दायनी ओर मुड़ा।
"तो चलो इस ओर है रतन चाचा का घर और चमनलाल का घर।", सुंदर ने कैमरे में और आगे देखते हुए कहा।
सामने रतन चाचा पिए हुए अपनी खाट पर बैठे बैठे गुस्से में चमनलाल के घर की तरफ देखकर बोल रहे थे जिसका घर थोड़ा सा आगे सामने की तरफ था।, "अरे ओह मंदा बाई चमनलाल भाई को जरा बताओ की अपने मोनू को संभाले। दिन ब दिन शरारती होते जा रहे गली के बच्चे।"
"अरे क्या हुआ रतन चाचा। इतना भड़के हुए क्यों है?", सुंदर ने अपना कैमरा रतन चाचा की तरफ करते हुए कहा।
"अरे कुछ पूछो मत। यह गली के बच्चे बोहोत ही शरारती हो गए हैं। उनके पिछवाडोंको डंडे की जरूरत है।", पूरे टल्ली होकर रतन चाचा बोल रहे थे। लेकिन उनकी बातों में गुस्सा कम और मजाक जादा लग रहा था।
"अरे लेकिन हुआ क्या?", सुंदर ने अपना कैमरा जिसकी रिकॉर्डिंग ऑन थी, अपने शर्ट की जेब में डालते हुए पूंछा।
"सुनो, आज सवेरे सवेरे जब सूरज भाई की नींद भी नहीं खुली थी तब मैं अपना डब्बा लेकर पिछले वाले शिंदे के खेत में निकला।", रतन चाचा ने कहा।
"अब ये सूरज भाई कौन है?", सुंदर ने पूछा।
"अरे, सूरज भाई मतलब सूरज आसमां में जो है वह।", रतन चाचा ने कहा।
"अच्छा, अच्छा। तो फिर क्या हुआ?", सुंदर ने जिज्ञासा से पूछने का नाटक करते हुए कहा।
"फिर उधर खेत में वह मोनू, संगीता बाई का मंगेश और हिमेश का लड़का पारस कसरत कर रहे थे। मुझे आता देखकर मेरी ओर चले आए। फिर वह मोनू और पारस मुझसे बाते करने लगा। लेकिन मुझे पता ही नही चला की वे बाते करने का सिर्फ नाटक कर रहे थे। क्योंकी उनका कूछ अलग ही प्लान था।", रतन चाचा ने कहा।
"क्या प्लान था?", सुंदर ने हैरानियत से पूछा।
"बताता हुं थोड़ा दम खाओ ना। वह लोग वहा से निकल गए फिर मैं गया अपने अड्डे पर अच्छी जगह देखकर मैं बैठ गया। लेकिन जब मुझे समाधान मिला और मेरा हो गया तब मैंने अपना डब्बा लिया और देखा तो क्या! उसमे पानी की जगह पूरा कीचड़ था।", रतन चाचा ने कहा।
"कीचड़!", आश्चर्यचकित होकर सुंदर ने कहा।
"हा कीचड़। मोनू और हिमेश सामने खड़े थे लेकिन वह संगीता बाई का मंगेश मेरे पीछे खड़ा था। पता ही नही चला की कब उसने मेरे डब्बे में मिट्टी डाल दी थी। ऐसा धोना चाहिए न इनको।", रतन चाचा ने कहा।
"फिर क्या हुआ? तुमने आगे कैसे किया सब? या वैसे चड्डी पहनकर चले आए?", सुंदर ने हैरानियत से पूछा।
"अरे वो मैं बैठे बैठे बोर होता हूं ना तो जमीन खोदते रहता हु वहा। तो आज खोदते खोदते एक छोटा पत्थर जमीन से निकला था। बोहोत ही अजीब और अलग ही था। पहले लगा की कोई हीरा या मोती मिल गया मुझे। हांss हांss हांss!!!", रतन चाचा ने कहा। और हंसने लगे। "लेकिन आखिर निकला पत्थर ही। तो उसी से ही काम चला लिया। बोहोत पुरानी तरकीब है। किसी को मत बताना।"
सुंदर अब रतन चाचा की तरफ हैरानियत से बस देखता ही रहा।
"साथ नही लेकर आए उस पत्थर को? घर में सजाने के काम आता।", सुंदर ने हंसते हुए कहा।
"अरे नही। उधर ही फेक दिया उसे मैंने।", रतन चाचा ने कहा।
सुंदर ने रतन चाचा की तरफ देखकर अपनी गर्दन हिलाई और कहा, "अच्छा तो चलता हु अब। ख्याल रखो रतन चाचा अपना और बच्चों से थोड़ा संभालकर रहा करो। समझे!"
"अरे हां! हां!, समझ गया मैं।", रतन चाचा ने बेवड़े अंदाज में कहा।
"लगता है अब यह सीन कट करना पड़ेगा वीडीओ में से।", सुंदर ने कहा। और वह चमनलाल के घर को पीछे छोड़कर आगे चला गया।
१७ जून २०२२ (दोपहर)
दोपहर का वक्त था। खेत पूरा धूप से नहाया था। मोनू, मंगेश और पारस उसी खेत में क्रिकेट खेल रहे थे जहा वह कसरत करते है और जहां रतन चाचा के साथ दुःखद हादसा भी हुआ था।
पारस गेंद को खेत की सीमा के पार दूसरे खेत में मारता है।
"अरे मंगेश जल्दी से बॉल ला", मोनू ने मंगेश को चिल्लाकर कहा।
मंगेश थका हुआ गेंद लेने के लिए भागता है।
"अरे मंगेश, संभालके नहीं तो रतन चाचा के ढोकले में पैर गिर जाएगा।", पारस अपना बल्ला हाथ में ऊपर उठाकर चिल्लाया। और हंसने लगा। साथ में मोनू भी हंसने लगा।
मंगेश सीमा पार करके दुसरे खेत में गया जहा कांटो के पेड़ जगह जगह पर थे। जिस के आसपास बोहोत सी छोटी छोटी घास भी उगी थी।
गेंद को मोनू की ओर फेंकते हुए मंगेश परेशान होकर चिल्लाया, "अरे यार मोनू ठीक से बॉल डाल ना।" क्योंकि अब वह तंग आ गया था बार बार गेंद लाने से।
"अरे हा! डालता हूं। तू देख अभी इसे आऊट करता हु।", मोनू ने मजाकिया अंदाज में कहा।
सीमा के पास आते ही अचानक से मंगेश का ध्यान एक पत्थर पर पड़ा। जो दिखने में अलग ही दिख रहा था। जिसके ऊपर लाल रंग के धब्बे लगे हुए थे। अब मंगेश का ध्यान उसी पत्थर के ऊपर गढ़ गया। उसने उस पत्थर को हाथ लगाया तो अचानक से उसने कुछ आवाजे महसूस की। उसका ध्यान ना मोनू के चिल्लाने पर था और ना पारस के। उसने उस पत्थर को अपने हाथ में उठाया। अचानक से मानो जैसे मंगेश उस पत्थर की शक्ति को महसूस करने लगा। उसकी आंखे अचानक से बंद हो गई। और वह धप्पss से नीचे गिर गया।
धीरे धीरे अब उसकी आंखे खुलने लगी। देखा तो सामने एक आदमी का चेहरा जिस के आंखोंके नीचे काली त्वचा थी। आंखों में लाली। वह हिमेश था। मंगेश के दायनी ओर पारस और बायी ओर मोनू था।
"अरे उठ गए बेटा! कैसा महसूस कर रहे हो?", हिमेश ने कहा।
उठते हुए मंगेश ने कहा, "अच्छा महसूस कर रहा हूं।"
"वैसे हुआ क्या था अचानक से?", हिमेश ने पूछा।
"अचानक से आंखे बंद हो गई और मैं नीचे गिर गया। मुझे पता ही नही चला आखिर क्या हुआ!", मंगेश ने हैरानियत के भाव से कहा।
"मुझे पता है। मुझे पता है यह कैसे हुआ?", हिमेश एकदम गंभीर भाव से कहने लगा।
"कैसे?", मोनू ने पूछा। अब सब हिमेश की ओर गौर से देखने लगे।
"बताता हूं! अरे दिन भर पोहा खायेगा और दुकान के पोंगे खायेगा तो यही होगा ना।", हिमेश ने कहा और हंसने लगा।
"अरेss यारs पापा।", पारस ने कहा।
"नही यह वैसी वाली चक्कर नहीं थी।", मंगेश अपनी बात कहने लगा।
अब हिमेश भी गौर से उसकी बाते सुनने लगा।
"वहा एक पत्थर था।", मंगेश ने कहा।
हिमेश ने उसको एक ग्लास दिखाया जिस मे उसने वह पत्थर रखा था जो मोनू और पारस साथ में उठाकर खेत से लेकर आए थे।
"हां यही पत्थर था। लेकिन इसपर कुछ लगा था। बोहोत गंदा था। शायद टट्टी थी। अच्छा हुआ आपने साफ कर लिया।", मंगेश ने कहा।
हिमेश ने पत्थर की तरफ देखकर उलटी वाला मूंह किया।
"मैंने उसे छुंवा और अचानक से मुझे आवाजे सुनाई दी और एक जगह दिखी।", अब एकदम शांति से और हैरानियत से मंगेश ने कहा।
अब हिमेश के कान खड़े हो गए। उसने हकलाते हुए पूछा, "कs कैसी आवाजे? और कैसी जगह?"
"वह आवाज कह रही थी। अरे तोड़ मिला या नही। याद है ना की मैं यहा दफ्न हूं।", मंगेश ने कहा।
"और कौनसी जगह तुमने देखी?", हिमेश ने और भी दिलचस्पी दिखाते हुए पूछा। हिमेश के चेहरे के भाव अब पूरी तरह से बदल गए थे।
मोनू ने हिमेश की ओर देखा और फिर मंगेश की ओर।
"वह अपने रतन चाचा का घर है ना। उसके सामने जो जगह है ना जहा वह खाट डालकर बैठते है वहा। शायद वह आवाज जमीन के नीचे से आ रही थी।", मंगेश ने कहा।
"क्यों अंकल अब खोदने की सोच रहे हो क्या?", मोनू ने हिमेश से कहा। मानो जैसे वह उनके विचारों को भांप रहा हो।
हिमेश ने कहा, "अरे नही रे मोनू। यह तो बस एक सपना है। छलावा है। रात को जादा देर तक वेब सीरीज देखने का नतीजा।" और मंगेश कि ओर देखकर हंसते हुए मजाकिया अंदाज में कहा, " कौन सी वेब सीरीज चल रही है बेटा???"
उनकी बात खत्म होते होते ही एक लड़की की आवाज आई, "अरे रिजल्ट लग गया दसवी का।" उसका नाम था चीनू जो की मोनू की बहन थी।
हिमेश खुशी से कहता है, "अरे तुम्हारा रिजल्ट लग गया बच्चो। मेरे पारस बेटे का रिजल्ट लग गया। जाओ बच्चो रिजल्ट देखकर आओ। और मुझे जल्दी से बताओ। जाओ।"
वह तीनों तेजी से उठ गए और सबकुछ भूलकर घर के बाहर चलने लगे। लेकिन मोनू अभी भी हैरानियत में था।
अब असली वाली खुशी हिमेश की बाहर आई। और वह खुद से ही कहता है, "लगता है मैं बोहोत करीब हूं। हमारे पूर्वजों ने जिस की खोज में अपनी जिंदगी गवा दी, उस खोज के मैं बोहोत करीब हूं। मनघड़त कहानियां अब सच्चाई का रूप लेगी। कनीक धरती के लोग हमारे बीच मौजूद थे, इस बात का खुलासा होगा। अगर मैं गलत नही तो यह उन पुराने जादू में से एक है और अगर मैं सही हूं तो उस लाश को जगाने के लिए चाहिए बस एक बूंद खून और उसका मंत्र।"
अब हिमेश खुशी से और आशा से अंदर ही अंदर उछल रहा था और बस रात के इंतजार में था।
उसी रात
अक्सर बस्ती के लोग बोहोत जल्दी सो जाते है। दिन भर काम करके थक जाते है। तो अपनी सुकून भरी नींद का आनंद लेते है।
हिमेश उठ गया और अपने साथ खोदने के लिए उसने फावड़ा लिया। जिस जगह का जिक्र मंगेश ने किया था वह जमीन नर्म थी। इसलिए हिमेश का काम और भी आसान था।
हिमेश ने जगह देखी और रात के अंधेरे में यहां वहा देखकर धीरे धीरे खोदने लगा। अचानक से कंधे पर किसी ने हाथ रखा। हिमेश डर गया और पीछे देखा तो क्या रतन चाचा एकदम टल्ली होकर खड़े थे।
"भाई पूरा खोद दो हा।", नशे में रतन चाचा बुदबुदाए।
"हां जरूर! जरूर! तुम बस आराम करो सुबह तक सबकुछ पूरा हो जाएगा।", रुक रुक कर और धीमी आवाज में हिमेश ने कहा।
और रतन चाचा को फिर से पकड़कर खाट पर लेटा दिया।
और थपथपाते हुए कहने लगा, "सो जाओ हा मम्मी का लाडला, मां का लाल।" और फिर से अपने काम पर लग गया। खोदते खोदते वह मग्न हो गया।
और क्या??? एक पेटी। उस पेटी को हिमेश ने खोला और देखा तो उसमें एक आदमी की लाश थी जो अभी भी ताजी लग रही थी। हिमेश रुक गया। उसके चेहरे का रंग उड़ गया। पसीने से लथपथ हिमेश के चेहरे के भाव एकदम से बदल गए।
थोड़े ही आगे सामने मोनू का घर था। मोनू के पिताजी घर के बाहर अपनी आंखे मलते हुए आए। बाथरूम का दरवाजा खोला और अंदर चले गए।
यहां हिमेश ने देखा की चमनलाल बाथरूम के अंदर गए है।जल्द ही वह बाहर आ जायेंगे। इसलिए उसने अपनी उंगली के ऊपर ब्लेड चलाया और खून निकलने लगा। हिमेश उस लाश के कान में मंत्र पूटपुटाया।
"बस एक बूंद खून। एक बूंद खून", हिमेश अपनी उंगली लाश के ऊपर पकड़कर बड़बड़ाता रहा। टप!!! बूंद उस लाश के ऊपर गिर गई।
यहां चमनलाल बाहर आ गया। उसी वक्त हिमेश की नजर चुपके से चमनलाल की ओर गई। लेकिन उसी दौरान एक हाथ ने हिमेश को छुवा और हिमेश वही के वही खड़ा खड़ा जिंदा लाश बन गया। वह आदमी उठ गया। चमनलाल वैसे ही आंगन में आंखे मलते मलते खड़ा रहा और उबासी देने लगा। उसी वक्त वह जमीन से निकला आदमी चमनलाल के पास चुपचाप आया। उसे देखकर चमनलाल चिल्लाने ही वाला था की उसके पहले ही उस आदमी ने चमनलाल के मूंह को छुवा। आवाज निकलने से पहले ही चमनलाल भी हिमेश की तरह जिंदा लाश बन गया। यह देखकर वह आदमी वहा से निकल गया।
एक कोने में छुपकर पारस यह सब देख रहा था। वह आदमी वहा से जाते ही पारस अपने पापा के पास चला गया। देखा तो वह पुतले जैसे बस खड़े थे। वह डर गया और मोनू के घर के पास गया। देखा तो चमनलाल अंकल भी पुतले जैसे बन गए थे। मोनू का दरवाजा बंद था।
पारस ने अपना मोबाइल निकाला। व्हाट्सएप ओपन किया और मोनू को मैसेज किया। "ओय मोनू! जल्दी से घर के बाहर आ। अपनी जिंदगी अब काफी खस्ता हालत में है।"
मैसेज के दस सैकेंड बाद ही तुरंत दरवाजा खुला।
"क्या हुआ हिमेश?", मोनू ने कहा। उसी वक्त उसकी नजर अपने पापा पर पड़ी और वह चौंक गया और दौड़ते हुए अपने पापा के पास गया।
"क्या हुआ इन्हे?", डरकर मोनू ने कहा।
पारस ने कहा, "मैं सब समझाता हू। पहले इन्हे हमे घर के अंदर ले जाना होगा।"
उसी वक्त चीनू घर के बाहर आई। उन सबको देखकर वह चौंक गई।
"क्या चल रहा है यह सब??? पापा का मूंह ऐसा खुला क्यों है? और क्या हो गया है इन्हे?? किसी के साथ स्टेच्यू स्टेच्यू खेल रहे थे क्या??", चीनू ने एकसाथ चौंकते हुए कहा।
पारस ने कहा, "मैं तुम्हे सब समझा दूंगा। लेकिन हमे पहले इन्हे अंदर ले जाना होगा।"
"अरेss!!! यह क्या हो गया? चमनलाल जी ऐसे मूंह खोलके क्यों खड़े है? क्या चुड़ैल देख ली क्या??", मंदाबाई ने पीछे से आकर कहा।
"अब बस इसकी ही कमी थी।", पारस ने धीमी आवाज में अपने सर को पकड़कर कहा।
"कुछ नही हुआ है। हम पहले उन्हे अंदर ले लेते है फिर मैं तुम्हे सबकुछ समझा दूंगा।", पारस ने परेशान होकर कहा।
मोनू ने कहा, "हां! चलो इन्हे अंदर ले लेते है।"
चमनलाल को अंदर लेते ही मोनू ने कहा, "अब बताओ इन्हे क्या हुआ है?"
पारस ने कहा, "बताता हुं। लेकिन मेरे पिताजी को भी अंदर लेना बाकी है।"
सब फिर से चौंक गए।
"हिमेश भाई साहब भी ऐसे ही बन गए है क्या?? बस आशा है कि उनका मूंह ऐसा खुला न हो।", मंदाबाई ने कहा। और धीरे से हसने लगी।
"अरे यार मम्मी!!! मजाक मत करो।", मोनू ने कहा।
उसी वक्त मोनू, चीनू और पारस बाहर चले गए हिमेश को लाने के लिए।
उसे लाते वक्त चीनू ने कहा, "तो पारस तुम कहा एडमिशन लेने वाले हो? साइंस, कॉमर्स या आर्ट?"
"अरे वोss एडमिशन वाली, यहां देख क्या चल रहा है। यहां अस्पताल में एडमिट होने की नौबत आई है। और तुझे साइंस कॉमर्स की पड़ी है", मोनू ने कहा।
हिमेश को अंदर लेते ही मोनू ने कहा, "अब बता हिमेश यहां चल क्या रहा है? यह सब क्या है? क्या मंगेश जो बाते दोपहर में बता रहा था उसका इससे कोई वास्ता है?"
"हां! जिस आदमी की आवाज मंगेश ने सुनी थी वह उठ गया है। हमे उसे पहले ढूंढना चाहिए। क्योंकि वह एक श्रापित आदमी है। उसके बाद मैं तुम्हे सबकुछ बताऊंगा। चलो जल्दी मेरे साथ।", जल्दी करते हुए पारस ने मोनू से कहा। और वह दोनो निकल पड़े उस श्रापित आदमी को ढूंढने।
मोनू और पारस निकल पड़े एक छोटे से रास्ते पर। रतन चाचा का घर पार करते हुए आगे बढ़ गए। वह दोनो उसी सीमेंट के ब्लॉक के पास आए जहां से सुंदर ने अपने व्लॉग कि शुरुवात की थी। वहा पर एक लड़का हाथ में गिटार लेकर बैठा था। जिसकी उम्र लगभग २३-२४ साल होगी। उसके बाल दोनो तरफ से दोनो आंखोंपर आते थे जिससे उसकी आंखे है या नही इसका लगभग पता ही नही चल पाता था। इसलिए उसे सब लोग छपरी गिटारिस्ट उर्फ भाऊ बुलाते थे।
भाऊ अपने ही धुंध में धीमी आवाज में गाना गा रहा था। क्योंकि सब लोग सो गए थे।
"हमारा जहां था आज छोड़कर चले है।
वो ले गए दिल पर सांसे अब भी बाकी है।"
मोनू कहता है, "भाऊ गाना तो बोहोत ही अच्छा है। किसका चुराया है।"
"अरे चुप मेरा गाना है ये। कॉपीराइट है मेरे पास।", भाऊ ने मजाकिया अंदाज में कहा।
"अच्छा भाऊ तुमने किसी आदमी को देखा क्या यहां से गुजरते वक्त। काफी अलग था हम सबसे।", पारस ने खामोशी से पूछा।
"शापित आदमी की बात कर रहे हो क्या?", भाऊ ने कहा।
"हां वही एकदम सही पकड़ा। लेकिन तुम्हे कैसे पता वह शापित है।", पारस ने कहा।
"अरे दरअसल उसने ही मुझे बताया और ये गाना भी उसी ने मुझे अभी बताया और वह चला गया वहा खड्डे में। शायद कुछ ढूंढ रहा है।", भाऊ ने सड़क की दूसरी तरफ के खड्डे की ओर इशारा करते हुए कहा।
खड्डे में बोहोत ही अंधेरा था। उसके कोने कोने में ही बस थोड़ी सी रोशनी थी जो की आसपास के रास्ते पर लगे स्ट्रीट लैंप की थी।
मोनू और पारस धीरे धीरे और डरते हुए खड्डे की ओर चल पड़े। खड्डा सुका था। और खड्डे के बीचोबीच एक आदमी बैठा था। रोते हुए वह आदमी सिसकारियां ले रहा था।
मोनू को और पारस को अचानक देखकर वह डर गया। डरते हुए उसने कहा, "मुझे कुछ मत करो। मुझसे तुम्हे कोई हानि नहीं है। मेरी मदद करो।"
मोनू और पारस एक दूसरे की तरफ देखने लगे। उनका डर अब बोहोत सा कम हो गया था। उस शापित आदमी की आवाज से तो लग रहा था की उससे उनको सच में कोई धोका नहीं है।
उसी वक्त गांव की लाईट चली गई। रास्ते के स्ट्रीट लैंप बंद हो गए। सबने यहां वहा देखा।
पारस ने कहा, "चलो हमारे साथ।"
वह तीनो पारस के घर आए। पारस ने अपने पिताजी के कमरे में जल्दी से मुंबत्ती लगाई। अब कमरे में थोड़ी सी रोशनी हो गई थी। उस रोशनी में सबके चेहरे, दीवार पर लगे कुछ नक्शे, टेबल पर रखी वस्तुएं और कागज के रोल सब धुंधले से दिख रहे थे।
मोनू ने कहा, "मेरे खयाल से हमे मंगेश को भी बुलाना चाहिए।"
"हां!! उसे भी बुलाते है। तुम यहां रुको मोनू मैं मंगेश को बुलाकर लाता हूं।", पारस ने कहा। और वह चला गया।
मोनू की आंखे अब उसी आदमी को ताक रही थी। थोड़ी शांति के बाद मोनू ने कहा, "कुछ पानी वगैरा लोगे क्या?? पता नही कितने दिनों से सोए थे जमीन के नीचे???"
उस आदमी ने मोनू की तरफ देखा। उसकी आंखों में आसू और निराशा एकसाथ झलक रही थी।
"दिनों से नही सालोंसे। ऐसा लग रहा है जैसे अभी की बात हो। यहां का सबकुछ मेरे आंखोंके सामने है। हमारा राज्य, हमारे लोग और हमारे महाराज।", उस आदमी ने कहा। और रोने लगा।
"कोई बात नही। अब उसमें से कुछ भी नही बचा। तुम ने सबकुछ पीछे छोड़ दिया है। ऐसा समझो जैसे अब तुम्हारी नई जिंदगी शुरू हुई है।", मोनू ने कहा।
उस आदमी ने मोनू की तरफ देखा। अब उसके चेहरे पर थोड़ी सी हसी आ गई थी।
मोनू ने कहा, "तुम्हारे रोने से लग रहा है जैसे तुम्हे किसी बात का बोहोत खेद है।"
उस आदमी ने मोनू की तरफ अचानक से अपनी आंखे फिराई। और कहा, "हां!!! बोहोत बड़ा खेद है। लेकिन यह सजा भी उस काम के लिए कम है।"
"किस काम के लिए?", मोनू ने पूछा।
उसी वक्त पारस और मंगेश भी आ गए।
मंगेश उस आदमी की तरफ देखकर चौंक गया और उसके मूंह से अचानक से निकल गया, "वोsss बाप!!!"
"यह लड़का कौन है?", आलम ने कहा।
"ये वही लड़का है जिस की वजह से तुम्हारा पता चल पाया। इसका नाम मंगेश है।", मोनू ने कहा।
आलम की आंखे बड़ी हो गई। और वह आश्चर्य के साथ मंगेश की ओर देखने लगा।
अध्याय ६ - जादूगरों के कविता का रहस्य
"तो सबसे पहले हमें बताओ कि तुम कौन हो और यह सब क्या हो रहा है? क्या मेरे और मोनू के पिताजी जिन को तुमने छूवा वह ठीक हो जाएंगे?", पारस ने तेजी तेजी से बोला।
उस आदमी ने कहा, "चलो बैठो। मैं तुम्हे सबकुछ बताता हु।"
सब लोग नीचे फर्श पर बैठ गए।
उस आदमी ने कहना शुरू किया।, "मेरा नाम आलम है। यहां हमारा राज्य था। जिस का नाम था कनिक। यह हमारे धरती का नाम था जहा से हम स्थलांतरित हो चुके थे। उसका अपना एक बोहोत बड़ा और प्राचीन इतिहास है। हम प्राचीन काल से महाराज को सबसे ऊपर का दर्जा देते है और उन्हें पवित्र मानते है। लेकिन राज्य के अंदर कुछ साजिशे चल रही थी राजा को हटाने के लिए। उसकी भांप राजा को लग गई थी। उसके बाद से राजा बोहोत ही अस्वस्थ और चौकन्ने रहने लगे थे। और इसी बात ने उनकी सुकून भरी निंदे छीन ली थी।"
"अच्छा तो चक्कर सारा गद्दी का था।", मंगेश ने बीच में ही कहा।
मोनू और पारस ने मंगेश की तरफ देखा।
आलम अपनी बात आगे कहने लगा, "दरबार के सारे लोग और मंत्रीगण अपनी अपनी वफादारी दिखाने की कोशिश करने लगे थे। ताकि महाराज का उनपर भरोसा टीका रहे। एक दिन दरबार में एक नृत्य था। नृत्य में सब मगन हो गए थे। महाराज भी अपना डर भूल गए थे। नृत्य के बीच महाराज का प्यालेबदार मदीना लेकर आया। मैं महाराज के पीछे ही खड़ा था। मदीना हाथ में लेकर महाराज पीने ही वाले थे की उसी वक्त मैंने अपनी वफादारी साबित करने के लिए महाराज से कहा, "महाराज!!! क्षमा, परंतु आपके पीने से पहले मैं इसको पीना चाहूंगा। शायद दुश्मन की कोई चाल हो??"
महाराज ने कहा, "तो इसे तुम मत पिओ। हम किसी गुलाम को इसे पिलाएंगे।"
लेकिन फिर भी मैंने कहा, "नही महाराज इसे मैं ही पिऊंगा। मैं आपका वफादार हु और आपके लिए जान देनी भी पड़े तो यह मेरा सौभाग्य होगा।"
"इसे कहते है खुद के हाथ से खुद के पैर पर कुल्हाड़ी मारना।", मंगेश ने बीच में ही कहा।
मोनू और पारस ने फिर एक बार मंगेश की तरफ देखा।
आलम फिर से अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहने लगा, "महाराज ने मुझे वह प्याला दिया और मैंने उसे पिया। महाराज खड़े हो गए। सब लोग हमारी तरफ ही देख रहे थे। मुझे कुछ नही हुआ। लेकिन मेरी वफादारी देखकर महाराज ने मेरे कंधोंपर हाथ रखा।"
आलम रुक गया।।।।
मोनू ने कहा, "आगे क्या हुआ???"
"गलती से मैने महाराज को छुंवा और महाराज जिंदा लाश बन गए।", आलम ने कहा। और रोने लगा।
"मां की आंख", मंगेश ने कहा। मोनू, मंगेश और पारस एक दूसरे की तरफ देखते रहे।
आलम ने फिर कहा, "दरअसल यह ऐसा श्राप था जिसका कोई तोड़ राज्य में नही था। मगर हैरानी की बात यह थी की यह श्राप पैदा करने के लिए कुछ असामान्य वस्तुओं की जरूरत थी जो की राज्य के अंदर मेरे खयाल से नही थी। बिना उस वस्तु के कोई भी जादूगर यह श्राप पैदा कर सके इतना ताकदवान नही था। इसका तोड़ भी किसी असामान्य वस्तु में ही था। लेकिन यह सारी वस्तुएं सिर्फ हमारे पवित्र कनिक धरती पर ही थी। मैंने अपना सबकुछ कर लिया लेकिन फिर भी तोड़ नही ढूंढ पाया। यह बात किसी को पता लगने से पहले हमने महाराज को महल के नीचे दफ़न कर दिया। सब प्रजा को बताया गया की महाराज एक धार्मिक यात्रा पर गए है और तबतक उनका पुत्र राज्य संभालेगा।"
उसी वक्त मंगेश ने शक के साथ कहा, "महाराज के बेटे की ही तो कोई योजना नहीं थी ना गद्दी पर बैठने की?"
अब सब उसके तरफ देखने लगे।
मंगेश ने आगे कहा, "नहीं। मतलब देखो महाराज को मारने की साजिश नही की। बस श्रापित किया। लेकिन यह बाते इतनी मुश्किल थी तो वह महल के अंदर तक कैसे आ गई? यानी ऐसा लगता है जैसे महल के ही वफादार लोगों में से कोई होगा। या हो सकता है कुछ लोग उनके बेटे से जुड़े थे। कुछ भी हो सकता है।"
यह बाते सुनकर सारे आश्चर्यचकित हो गए। आलम चौंकते हुए मंगेश की ओर ही देख रहा था।
"जादा वेब सीरीज देख के जादा दिमाग चलता है तुम्हारा मंगेश।", पारस ने कहा।
आलम ने आगे कहा, "लेकिन अब इन सब बातों का कोई फायदा भी नहीं। मैं बोहोत खेद में था की महाराज इस हालात में मेरी वजह से थे। मैंने अपने साथीदारोंसे कहा, अब मैं भी खुद को दफ़न कर रहा हु। ताकि मैं आज भी अपनी वफादारी साबित कर सकू। जब तोड़ का पता लग जाए तभी मुझे जगाना। लेकिन मैं कहा दफ़न हु यह बात किसी को मत बताना। क्योंकि अगर मुझे कुछ हो गया तो महाराज भी नही रहेंगे। क्योंकि अब मैं खुद एक श्राप बन गया हु। लेकिन तुम्हे पता है मुझे ढूंढने का जादू। और बस मैं सो गया।"
"क्या??? तो आगे क्या हुआ??? बस इतना ही है क्या? तोड़ का क्या हुआ??", मोनू ने डरते हुए तेजी तेजी से कहा।
"उसके बारे में तो मुझे भी कुछ नहीं पता।", आलम ने कहा।
"गई भैंस पानी में", मंगेश ने अपने सर को मारते हुए कहा।
"लेकिन एक बात बताओ तुम जिंदा कैसे रहे इतने साल?", मंगेश ने कहा।
"यही तो खास बात है इस श्राप की। की यह तुम्हे मरने नहीं देता। मुझे पक्का यकीन है की यह श्राप हमारे धरती के एक जीव से पैदा किया था। जिस का एक अलग इतिहास है। इसलिए मैं अबतक जिंदा हु।", आलम ने कहा।
"ये श्राप तो काफी अच्छा है की मरने नहीं देता।", मंगेश ने कहा।
"लेकिन श्राप बुरा ही होता है और हर श्राप की कीमत होती है। जिसे अब मैं चुका रहा हूं।", आलम ने निराशा से कहा।
"वैसे भी मुझे शक हो ही गया था की हिमेश अंकल की कुछ दाल पक रही है। लेकिन उस कोयले के चटके हमे भी लगेंगे यह नही पता था। ", मोनू ने कहा।
पारस ने कहा, "हमे माफ कर दो। हमारी वजह से तुम्हे यह सब झेलना पड़ रहा है।"
"कोई बात नही। हम साथ है भाई तेरे। बस अगली बार बताके करना जो भी करना है।", मोनू ने कहा।
तीनो थोड़े से भावुक हो गए।
पारस ने कहा, "मुझे पता है। शायद जादूगरों ने इसका तोड़ ढूंढ लिया था। मेरे पिताजी उसी कविता को हल करने में लगे थे।"
"देखो!!! अभी आर्कियोलॉजिस्ट का खून उबलने लगा है।", मंगेश ने कहा।
"कहा है वह कविता?", आलम ने कहा।
पारस उठा और टेबल पर रखे रोल को खोला और कहा, "देखो।" अब सब देखने लगे। मोनू ने पढ़ना शुरू किया,
"वो पवित्र उसका बसेरा है जहां।
सारे श्रापोंका तोड़ कैद है वहां।
वो पवित्र जो सना है मिट्टी से उसकी गोद में है टुकड़ा जो टूटा है जीवन से।
समाई है शक्ति उस टुकड़े में संभव किया जादूगरों ने।"
"अगर हमे उस तोड़ को ढूंढना है तो हमे पहले इस कविता को समझना पड़ेगा।", मंगेश ने कहा।
"आलम तुमने बताया कि तुम प्राचीन काल से महाराज को सबसे पवित्र मानते हो।", मोनू ने कहा।
"हां", आलम ने कहा।
"तो अगर मान ले की यह महाराज के बारे में है तो उनका बसेरा क्या है?", मोनू ने कहा।
पारस और मंगेश ने कहा, "क्या है?"
"अरे भाई!!! महल। महाराज महल के अंदर ही तो रहते है ना।", मोनू ने कहा।
"अरे हां यार!!!", मंगेश और पारस ने खुशी से कहा।
"तो देखो हो सकता है की यह कोई टुकड़ा है जो महल के अंदर है। लेकिन महल के अंदर कहा?? यह सवाल है।", मोनू ने कहा।
सब सोच में पड़ गए।
"और क्या है आलम जो तुम्हारे लिए पवित्र था?", मोनू ने आलम से पूछा।
आलम सोचने लगा और तुरंत उसने कहा।
"हम हमारी कनीक धरती को, वहा के जल को और वहा के पेड़, पौधे और रूक्ष को पवित्र मानते थे।", आलम ने कहा।
"तो मिल गया। सना है मिट्टी से यानी यह जमीन। जब तुम स्थलांतरित हुए उसके बाद यह जमीन तुम्हारे लिए कनीक बन गई थी यानी पवित्र है ना आलम?", मोनू ने कहा।
आलम के कुछ कहने से पहले ही मोनू ने फिर से कहा, "तो यह टुकड़ा महल के जमीन के नीचे हो सकता है।"
"वोsss भाई!!! इसमें कोई शक नहीं की तू टॉपर है दसवी का।", मंगेश ने कहा।
सहमति दिखाते हुए पारस ने सर हिलाया।
"वैसे सेकंड टॉपर है। फर्स्ट टॉपर तो मेरी प्रतीक्षा है।", मंगेश ने फिर से आंख मारते हुए और हंसते हुए कहा।
"अब ये प्रतीक्षा कौन है?", आलम ने कहा।
"अरे वो इन दोनो की होने वाली भाबी है। यही पास में ही रहती है।", मंगेश ने हंसते हुए कहा।
"अरे वो सब छोड़ो। लेकिन अब सवाल यह है की वह महल की जगह है कहा?", मोनू ने कहा।
"वह जगह अभी भी मुझे याद है। उसी को मैंने आखरी बार देखा था। वहा जहा से तुम मुझे लेकर आए।", आलम ने कहा।
"अच्छा तो उस खड्डे में?", मोनू ने कहा।
"तो चलो जल्दी चलते है। लेकिन वह टुकड़ा हम ढूंढेंगे कैसे?", मंगेश ने कहा।
"मैं ढूंढूंगा। इतनी ताकद तो है मुझ में की एक जादू की शक्ति को महसूस कर सकू।", आलम ने कहा।
"तो चलो।", सबने एकसाथ कहा।
वह उस जगह पर पोहोंच गए।
आलम अपनी शक्ति से उस टुकड़े को ढूंढने की कोशिश करने लगा। वह चलने लगा और फिर रुक गया।
"इसके नीचे ही है वह टुकड़ा", आलम ने कहा।
मंगेश ने मोबाइल की बैटरी ऑन की।
वह खोदने लगे। नीचे खोदते खोदते उन्हे एक लकड़ी का छोटा टुकड़ा मिला।
आलम ने उसे हाथ में पकड़ा।
"असंभव!!!", आलम ने चौंकते हुए कहा।
सब आलम की तरफ देखने लगे।
"इसमें असंभव जैसा क्या है?", मोनू ने कहा।
"यह जादूगरों ने बनाया तो है लेकिन यह खुद उस परी के अंदर की शक्ति है।", आलम के चेहरे पर खुशी छा गई।
"अब यह परी का क्या मामला है???", मंगेश ने पूछा।
मोनू, पारस और मंगेश एक दूसरे के तरफ देखने लगे।
"अब आगे क्या करना है?? आलम!", मोनू ने पूछा।
"अब बस मुझे इसे खाना है। यानी इस शक्ति को मेरे अंदर समाए देना है। फिर श्राप खतम और सब ठीक हो जायेगा।", आलम ने कहा।
और उस टुकड़े को खाने लगा।
टुकड़ा खतम होते ही उसने कहा, "चलो जल्दी तुम्हारे घर। तुम्हारे पिताजी ठीक हो गए होंगे।"
मोनू, मंगेश और पारस तेजी से दौड़ने लगे। लेकिन आलम धीरे धीरे सोच में डूबा चल रहा था। उसी वक्त रास्ते की स्ट्रीट लैंप जल गई।
घर पोहोच ते ही देखा तो चमनलाल और हिमेश ठीक हो गए थे।
आलम को अभी भी बोहोत सी बाते तंग कर रही थी। बोहोत से सवाल उसके मन में घूम रहे थे। जैसे की आखिर उस जीव के अंश कैसे आए राज्य के अंदर जिस से यह श्राप पैदा हुआ। उस परी का राज्य में आना। अगर तोड़ मिल गया था तो उसे जमीन से बाहर क्यों नही निकाला। आखिर क्या हुआ था राज्य के अंदर। क्या अब भी हमारे कोई लोग बचे है? मंगेश नाम के लड़के ने उस पत्थर की शक्ति को कैसे महसूस किया? क्या वह जादूगरों का वारिस है?
लेकिन वैसे भी अब इन सब बातों का कोई भी फायदा नही था।
चलते चलते वह रुक गया। उसने खुद से कहा, "अगर श्राप खतम हो गया है तो महाराज भी उठ गए होगे।"
और वह उनकी कब्र की ओर जो उसी जमीन के नीचे दफ्न थी तेजी से दौड़ पड़ा।।
To Be Continued...