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दूर बचपन में कही,
खुशियों भरी इक जगह
मेरा घर, मेरा गांव, जहां रहता मेरा परिवार , मेरी मां
धरती पर जैसे स्वर्ग, मैंने देखा है
था मगर पिछड़ा सा
ना सड़क,ना स्कूल, ना कोई उम्मीद
कम बिजली के कारण अंधेरा सा
लेकिन फिर भी बेफिक्र
लोगो को ज़िंदगी जीते मैंने देखा है

शिक्षा समाज का महत्वपूर्ण अंग है
इसलिए गांव से बाहर निकलना जरूरी है
आ बसे शहर में जहां अपना भी बेगाना सा लगे
इतना शोर होते हुए भी सब कुछ वीराना सा लगे
कुछ आ बसे शहरों में तो कुछ को रोते बिलखते घर की जिमेदारियां संभालते मैने देखा है
बचपन में ही हो जाते है कुछ लोग बड़े
अपने दोस्तों और भाई बहनों में
सच होते इस कहावत को मैने देखा है

मेरी गाय को देखने वाला ना था कोई
इसलिए बेचने के अलावा कोई रास्ता ना था
समझदार थी वो इसलिए मां की तरह ही मुझे सहला रही थी अपने गले से
मेरी मां और गौ मां दोनों का बराबर सयोग था मेरे लानन पालन में
लेकिन फिर भी
आंखे नम करके सवाल पूछते उसे
मैने देखा है

मेरे हर कदम पर साथ चलने वाला मेरा कुत्ता
जो सबसे अजीज था मुझे
याद है मुझे जब मेरे जाने से पहले से ही वो बेचैन था
मानो उसको बनक थी इस बात की
कि अब वो खाना कैसे खायेगा
कई किलोमीटर पैदल चलने के बाद
जहां तक वो भाग सकता था
वहा तक वो भागा था
मैं रो रहा था की कोई रोक लो
मैं उसको गले लगाना चाहता हूं
वो भयानक मंजर था मेरे बचपन का
जिसे याद कर आज भी रूह कांप जाती है
मेरे प्रति वो असीम निस्वार्थ प्रेम, मोह
अपने उस दोस्त में
मैने देखा है

ऐसी कितनी ही चीज़े छूट जाती है पीछे
जब सुविधाओं के अभाव में हमे
उस जगह को छोड़ना होता है
जहा हम सच में ज़िंदगी जीते है
जहां हर रिश्ता सच है
जहां हर बात सच है
ऐसे ही कई अपनों को खोते हुए
मैने देखा है

अभी भी हालत बदले नहीं है खास
सड़क तो आ गई
लेकिन शिक्षा के लिए आज भी मजबूर है
कुछ रुख करते है शहरों की तरफ
तो गांव का एक बड़ा हिस्सा घर बैठने पर मजबूर है
पर कैसे जीते है उम्मीद के सहारे ये
मैने देखा है

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