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ये जो तुम यूं बेफिक्र हो कर घूमते हो
क्या कभी गौर किया है की तुम क्यों इतना अकड़ते हो
बिना किसी की परवाह किए
अपनी इच्छाओं की गठड़ी खोलकर जो बैठे है हम सभी
कभी सोचा है कि किसके सुकून का हन्नन तुम करते हो
पिता ! पापा ! बाप! बापू! बाबा!
क्या कभी सोचा है कि बचपन में हर खिलोना अपना सा क्यों लगता था
हर सपना पूरा क्यों होता था
क्यूं लगता है की सब ठीक हो जायेगा
क्यूं मन में कोई डर नहीं रहता है
हर ख्वाब अधूरा नही रहता है
कर लेते हो कितनी ही गलतियां तुम
वो इंसान रूठ कर भी साथ तुम्हारे रहता है
एक गलती किसी से हो जाए गर
तो जिंदगी भर तुम उसे माफ तक नहीं कर
पाते
और एक शक्स तुम्हे बार बार अपनाता है
कोई इतना निस्वार्थ प्रेम कैसे किसी से कर पाता है
क्या कभी गौर किया है
जब कभी तुमने कुछ मांगा है
तन मन से उसने तुमको दिया है
जो न दे पाए कभी तो उनके मौन में क्या कभी लाचारी को महसूस किया है
सुनी है कभी सिसकियां उनकी
जो बिना गलती के भी भरी है उन्होंने
वो लड़ते हर ज़माने से तुम्हारे लिए
वो झुक जाते है तुम्हारे लिए
पिता अमीर हो या गरीब
अपनी हैसियत के हिसाब से वो
अपनी औलाद की हर ख्वाइश पूरी करने की कोशिश करता है
जान गिरवी रख देते है वो
तुम्हारे एक सपने को पूरा करने के लिए
और बदले में तुमसे कुछ नही चाहते वो
अजीब है ना
इतना करने के बावजूद भी
तुम्हारी शिकायत का पिटारा कभी खाली नही रहता
दो पल तुम बैठ नही पाते उनके पास
क्या इतने बड़े बन गए हो तुम कि
अपने जन्मदाता को ही भूल जाते हो
अभी मां बाप है तुम्हारे पास उनकी कदर कर लो
ज़माने की जितनी चिंता करते हो उसका कुछ हिस्सा ही सही उनकी फिक्र कर लो
बाद में चील कौवों को खाना खिला कर क्या ही हो जायेगा
अरे
वो तो हवा बन जायेगे
और हवा को किसी की जरूरत नहीं रहती
जरूरत उनको आज है तुम्हारी
दो मीठी बाते उनसे अभी कर लो
तब शायद तुम महसूस कर पाओ
जिस घड़ी उन्होंने तुमको किसी चीज के लिए मना किया
तो सीना छलनी हो गया उनका
तुम्हारा उदास चेहरा देख
शायद तुम महसूस कर पाओ
कि देर से ही सही वो हर चीज तुम्हारे कदमों में रख देगे
शायद फिर तुम उनसे कभी नाराज न हो पाओ ।
और न गुजरे वो मौत से भी बदतर तुम्हारी नाराजगी से ।

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