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एक दिन छत पर बैठा भविष्य पर चिंतन कर रहा था
तभी कानों में गूंजी कुछ सिसकियां
चारों ओर नजर घुमा कर देखा तो कुछ ना आया नजर
फिर से सोच में पड़ने ही लगा था कि
एक दर्द भरी आवाज आई
मैंने पूछा कोन है
आवाज आई, ये में हूं तुम्हारी छत के गमले में लगा एक फूल
मैं हैरान हो कर पूछने लगा की ऐसा कैसे हो सकता हैं
क्या इतना खूबसूरत फूल भी भला कभी रो सकता है
मेरे पूछने पर उसने कहा
रूकी रूकी सी सांसे है
आस नही है जीवन से
बंधा बंधा महसूस होता है
मानो दिल निकल गया हो सीने से
रोना आ रहा है किस्मत पर
क्या गुनाह हुआ होगा मुझसे जो अलग होना पड़ा मुझे मेरी जमीन से
अचंबित सा मैं समझ नहीं पा रहा था उसकी व्यथा को
मैंने कहा तकलीफ है तुम्हे किस बात की
ऊपर नीला आसमान है
बारिश का बरसता पानी है
सुंदर तुम्हारा रूप है
पूरी दुनिया जिसकी दीवानी है
हमारे छत पर रहते हो
पालन पोषण तुम्हारा हम करते है
चाहे तुम्हारी खाद हो या तुम्हारा पानी हो
रखते ख्याल हर पल सब
दादी हो या नानी हो
बिलखती आवाज में वो कहने लगा
तुम्हे रहने को सोने का बंगला मिले
खाने को शाही पकवान
हीरे मोती से जड़ा बिस्तर मिले
पर ना मिले वो खुला आसमान
ना आजादी हो अपने सपनो को जीने की
ना आजादी हो खुल कर हंसने की
क्या चुनोगे तुम
एक छोटी जिंदगी आजादी से भरी
या शाहनोशोक्त की जिंदगी परंतु बंधन से भरी
मेरे छोटी जिंदगी चुने पर उसने कहा
तुम्हारा ये छोटा सा गमला भी मेरे लिए उस सोने के बंगले के समान है जिसको में कभी नहीं चुनता
मुझे उस खुले आसमान के साथ साथ
मेरे हिस्से की वो जमीन चाहिए
जहां मेरी जड़े, जकड़ी हुई न महसूस कर सके
फैल सके वो मिलो दूर जहां तक वो जाना चाहती हो
ना आड़े आए तुम्हारी छत मेरे बढ़ने के
जहां मैं महसूस कर सकूं
वो आजादी
खुली हवा में जीने की
प्रकृति द्वारा बरसाए गए पानी को स्वयं पीने की
कुछ भाई मेरे टूटेंगे तुम्हारे घरों की सजावट में
कुछ भाई तुम्हारे बच्चों की मुस्कान के लिए मर मिट जायेंगे
कुछ सजेंगे त्यौहारों पर
और कुछ मैयत पर सजाए जायेंगे
मालूम है हमें बहुत छोटी सी ज़िंदगी है हमारी
बस उसमे हमसे हमारी हिस्से की जमीन ना छीनों
बेशक लोग तारीफ करेगें तुम्हारे घर के गमलों में लगे सुंदर फूलों की
लेकिन हम खुश नही होगे
ठीक उसी तरह जैसे तुम खुश नहीं होते तुम्हारे बढ़ते कदमों को गर कोई रोक दे
हमे बस उस जमीन पर उगने दो जहां हम खुल कर बड़ पाए, जी पाए और तुम्हारी खुशियों में दिल से शामिल हो पाए।
बस इतनी सी ही विनीत है
बस इतनी सी ही विनीत है
में निशब्द हूं
बंधन के इस रूप को देखकर
बस कोशिश अब से यही रहेगी कि
मेरी छत पर अब कोई फूल या पेड़ पौधा न जिए अपनी सांसे रोक कर।
कि अब कोई फूल या पेड़ पौधा न जिए अपनी सांसे रोक कर।