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क्यूं मैं आज लाचार हूं
पिता की तरह खेत जोत कर कभी अन्न दिया तुमको
कभी गाड़ी बन सफर आसान तुम्हारा किया
घरों की शान हुआ करता था कभी
तो फिर क्यों
आज बेघर हूं मैं
पिता के समान वजूद था मेरा कभी
और आज अपने ही वजूद को तलाशता हुआ मैं
दर बदर की ठोकर खा रहा हूं
अपने अस्तित्व की तलाश में हूं
तलब है फिर एक बार आंगन में बंधने की
तुम्हारे खेतों में पसीना बहाने की
मशीनों का जमाना आ गया
और भूल गए सभी मुझे
पैदा होने के कुछ समय तक ही देख पाता हूं मैं दुनिया
जब तक मेरी मां मुझे दूध पिलाए बिना दूध नहीं देती
सिर्फ तब तक ही जी पाता हूं मैं
फिर छोड़ आते हैं मुझे
जंगल में.....जहां शिकार बन जाता हूं मैं जंगली जानवर का
या छोड़ देते है भटकने के लिए
टकटक्की लगे मैं मेरे मालिक के आने का इंतजार करता हूं
और पूछता हूं उस ऊपरवाले से
कि
कहा कमी रह गई मेरी मेहनत में
जिनकी सुखी जमीन से मेने अन्न उगा कर दिया
छोड़ दिया उन्होंने ही मुझे ये प्लास्टिक खाने के लिए
वो वक्त भी अजीब था जब दूर दूर से लोग मुझे खरीद कर लाते थे
गाय हो या न हो
पर एक बैल जरूर हर घर के आंगन में बंधा मिलता था
हीरा मोती जैसे नामों से सोबीत हुआ करता था मैं
लेकिन आज पड़ा मिलता हूं अनचाही जगहों पर
मेरे आंसू बह रहे है,
उदास हो रहा मेरा मन
कौन सा युग ये आन पड़ा
कैसा हो गया एक बैल का जीवन
कल को गाय दूध न दे पाए तो
छोड़ देगा इंसान उसे भी
बिना ये सोचे की उसके बच्चों को मां की भांति दूध पिलाया है
वाह री! आधुनिकता
तू आई
मेरा वजूद घटता गया
आज तू चरम पर है
और में भूखा प्यासा सड़कों पर
तू अपनी बुढ़ापे में होगी
और में इस दुनिया में बस एक कहानी बन कर रह जाऊंगा
और कितना सितम आखिर रहता है
पल पल मेरा मन ये कहता है
क्या यही है मेरा अंत
क्या यही है मेरा अंत
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