हां! अच्छे लगते हैं ये बादल मुझे
वक्त मिल जाता हैं तुम्हे एक और जगह निहारने का
तुम्हारी छवि बनाने का
तुम्हे अपने और करीब महसूस करने का
हां! अच्छे लगते हैं ये बादल मुझे
इनसे आकृति बनाना
तार तार जोड़ कर तुम्हारा रूप साकार करना
इन में डूब जाना
खो जाना तुम्हारे सपनों में
हां ! अच्छे लगते हैं ये बादल मुझे
इनमे तुम्हारा संवारा रंग मिल जाता हैं
केश नजर आते हैं कही
तो कही तुम्हारी बड़ी बड़ी आंखे नजर आती है
मोर पंख से सोबित मुकुट नजर आता है कही
तो कही तुम्हारी अमूल्य मुस्कान नजर आती हैं
कूर्म से लेकर कृष्ण तक सब नजर आ जाता है कही
तो कही श्रीमदभागवतम के बारह स्कंद सामने आ जाते हैं
हां!अच्छे लगते हैं ये बादल मुझे
तुम्हारी बंसी की तान
तुम्हारी मधुर मुस्कान
मानो प्रेम की वर्षा कर रहें हो
हां! अच्छे लगते हैं ये बादल मुझे
क्या बताऊं केशव
मैं निशब्द हूं
मुझे हर दिशा, हर दशा में बस तुम
नजर आते हों...