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आखिर ये कैसा पड़ाव है ज़िंदगी का
कि सभी मुझे मेरे ही घर से दूर कर देना चाहते है
जहां में पैदा हुई 
पली बड़ी 
दुनिया को जाना मैने जहां 
जहां मेरे सब अपने रहते है 
मेरे माता पिता रहते है 
आखिर सब क्यों इतने बेकरार है 
आखिर मां बाबा का ये कैसा प्यार है
सिर्फ सुना ही था की बेटी पराया धन है 
पर कैसी घड़ी आई है ये 
कि खुद ही इसका एक अंश बन रहे है
सुना था कि लड़की का हाथ मांगने आ रहे है 
लेकिन आज खुद ही इस राह से गुजर रहे है
दिल बैठता जाता है 
सोच कर कि क्या करे
दूसरे घर को जाना है
रीत तो निभानी है 
पर कही किसी गलत शक्स का हाथ ना थाम ले
मेरे ना कहने पर 
मां बाबा को मेरे लिए चिंतित होते देख 
लगता है .....क्या वाकई बेटी की शादी न होना इतना बड़ा विषय है 
कि चिंतित हुआ जाए
तो सुनो मां बाबा 
नहीं चाहिए कोई राजकुमार 
नहीं चाहिए कोई सोने चांदी के जेवरात
नही चाहिए बड़ा घर 
चाहिए कोई ऐसा इंसान जिसके साथ ज़िंदगी भर खुश रह सके
समझ सके वो हमे
सुलझाए हमको जब भी हम कभी उलझ जाए
उड़ने दे आसमान में 
बस डोर उनके ही हाथों में रहे हमारी
जीने दे हर वो ख्वाब 
जो विवाह से पहले 
समाज के ढेकेदारों ने हमें देखने तक नहीं दिया 
जेब से ना सही 
दिल से वो अमीर हो 
आपको प्यार उसी तरह करे जैसे हम करते है
बड़ा महल ना सही
छोटा सा मकान ही हो 
घर उसे हम मिलकर बना देगे
ऐसा कोई मिले तो फिर
हम चले जायेंगे यहां से 
वादा करते है कि आपकी चिंता भी साथ ले जाएंगे 
बस
थोड़ा वक्त हमें दे दीजिए
थोड़ा लोगो को जानने का 
थोड़ा पहचाने का
ताकि हम जिंदगी खुशी से बसर कर सके

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