हमारा भारतवर्ष जो विश्व गुरु था, जिसकी सभ्यता, संस्कृति का डंका चारों ओर बजता था, आज वो सभ्यता, संस्कृति, धर्म, रीति-रिवाज दम तोड़ रही है, लोग अपनी प्राचीन संस्कृति को भूलते जा रहे है और वाहावाही में जीवन जीना चाह रहे है, आखिर कब तक चलेगा ये सब?
सच में आज सभी पुरुष धृतराष्ट्र तथा माताएं गांधारी बन चुकी है, बस सभी अपने आप को और अपनी भावी पीढीयों को अधर्म, छल, पाखंड, कूटनीति के बल पर सुरक्षित रखना चाह रहे है। महाभारत के समय में जो एक धृतराष्ट्र था, जिसके 100 पुत्र थे, परंतु किसी भी पुत्र तथा पिता के पास धर्म से संबंधित कोई ज्ञान नहीं था, चूंकि धृतराष्ट्र तो ऑंखों से अंधा होने के साथ साथ धर्म नीति में भी अंधा था, जबकि उसके पास भीष्म पितामह जैसे वीर, न्याय प्रिय विदुर, द्रोणाचार्य जैसे महान गुरु भी थे, परंतु वह अपने पुत्र प्रेम में इतना अंधा था कि उसे धर्म, नीति की कोई बात समझ नहीं आती, जिसके कारण समूल कौरव वंश का नाश हो गया। यही स्थिति आज हम सब की भी है, हम अपनी आने वाली पीढ़ियो को धर्म के मार्ग पर ना चलाकर उसे भटकाने का कार्य कर रहे है, जिसका परिणाम भी हमारे हित में नहीं होगा और बाद में हम सब भी धृतराष्ट्र की तरह ऑसू बतायेंगे और सारा दोष भगवान को देंगे।
आज हम सब अपने बच्चे, बच्चियों को बड़े बड़े विद्यालयों, महाविद्यालयों में दाखिला करवा देते है, उनके पसंद की हर जरुरत को पूरा करने में अपने भी समय का बलिदान करते है, परंतु उन्हें हम अपनी सनातन संस्कृति से अवगत कराने में हम अपने आप को हीन समझते है। छोटी छोटी बच्चियों को अर्धनग्न कपड़े पहनाकर, उन्हें आधुनिक नृत्य कला के लिए भेजते है, बच्चे को हिप हाॅप गाना सुनने के लिए मोबाइल के साथ साथ बाइक दे दिया जाता है और ये सब हम अपने बच्चे/बच्चियों से प्रेम के कारणवश करते है, परंतु इसी तरह प्रेम पूर्वक हम उन्हें अपनी सनातन धर्म के बारें में नहीं बताते क्योकि इससे हमें हीनता की अनुभूति होती है और तो और साधु - संतों, ऋषि-मुनियों के बारे में मनगढ़ंत बातें बतला कर इससे भी किनारा कर लेते है, तो अब क्या फर्क रहा महाभारत के धृतराष्ट्र तथा आज हम जैसे धृतराष्ट्र में?
हमारे इसी समाज में कई ऐसे शकुनी भी बैठे है जो हमारी भावी पीढियों को दुर्योधन तथा दु:शासन बनाने के लिए काफी है क्योंकि हम सभी पहले से ये गुण अपनी पीढियों में भर चुके है, और जब कुछ शकुनी का साथ मिल गया तो फिर चीरहरण, जुआ, मदिरापान जैसे कार्य आसानी से करेंगे और हमें कानों कान इसकी खबर नहीं होगी क्योंकि हमारी आंखों पर पुत्र मोह का पट्टी जो पड़ा हुआ है।
इसलिए अभी भी समय है, आज से ही अपनी भावी पीढ़ियो के सर्वांगीण विकास पर बल दिया जाए, अगर खुद से ना हो सके तो इसी संसार में कहीं गुरु द्रोणाचार्य, न्याय प्रिय विदुर, भीष्म पितामह भी है बस हमें खोज करने की जरुरत है।