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मां मुझे डर लग रहा है
मेरा हाथ तुम थाम लो
देख रही है दुनिया की नज़रे मुझे
मन मेरा सिहर सा रहा है
अकेलापन सा खटक रहा है
इस बंद कमरे में
दम सा घुटने लगा है इन चार दीवारों में
दर्द सा हो रहा है
अकेला सा पा रहा है खुद को
जीने की उम्मीद सी खो रही हूं
ये सूरज की किरणे जला रही है मुझे
और ये बारिश की बूंदे
जो कभी सखियां हुआ करती थी तेजाब सी लग रही हैं
इसलिए जा रही हूं मैं
बहुत दूर जा रही हूं मैं

मां होगें तीज त्योहार कई
आयेगी सहेलियां मेरी
पूछेगी मेरा हाल वो
ना पाकर वो रोएंगी
समझाना तुम ही उन्हे
देना आखिरी संदेश मेरा
बच कर रहे इन दरिंदो से यहां
ना हाल हो मेरी तरह तुम्हारा
नोच खायेगे भेड़िए तुम्हे
ना रूह बचेगी ना रूहानी
बस रह जायेगा तो कुछ वो होगी तुम्हारी कहानी
मांगती हूं माफी पिता के चरणों में गिर कर
की जा रही हूं छोड़ कर
ना सेवा कर पाऊंगी तुम्हारी
ना सपने पूरे होगे मेरी शादी के
रह जायेगा दहेज घर पर ही तुम्हारे जो तुम सालों से इक्कठा करते आ रहे थे
माफ करना मुझे मेरी ढोली की जगह अर्थी को कंधा देना पड़ेगा
रह जायेगी भाई की कलाई सुनी राखी पर अब से
पूछेगा जब भी वो तो कहना उसे
सजा मिली उस गुनाह की
जो कोई और कर गया
तेरे प्यारे घर से आज तेरी बहन को बेघर कर गया

माफी तुमसे भी मांगती हूं मां
कि नही काम में हाथ बंटा पाऊंगी
छोड़ कर ऐसे बेहाल तुझे
मैं भी कहां खुश रह पाऊंगी

आखिर क्या गलती थी मेरी
आखिर क्या गलती थी मेरी
जो सबको बेहाल करके जाना पड़ रहा है
पर क्या करूं मां
जीने से मुझे डर लग रहा है
मां जीने से मुझे डर लग रहा है

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