मेरी इच्छा बस यही है - " आपकी ख्वाहिश बनूं मैं,
आप के दिल और नजर का, नूर बन कर ही रहूं मैं,"
आपकी ख्वाहिश बनूं मैं…
मुझे चाँद जब तुम ने कहा तो, चांद सी बनने लगी मैं,
चांद की सोलह कला सा, नित रूप नव गढने लगी मैं,
यही चाहूं, तेरी तमन्ना, चाहतों के, सिर्फ सांचों में ढलूं मैं ।
आपकी ख्वाहिश बनूं मैं…
सम्मान वह तुमने दिया है, हुई रूह तक ये तृप्त मेरी,
तुम्हें समर्पित करके सब कुछ, तेरी बनी हूं दृप्त चेरी,
पांव ना टिकते जमीं पर, उन्मुक्त नभ में, अब उडूं मैं ।
आपकी ख्वाहिश बनूं मैं…
मैं धवल उस चांदनी सी, पावन, शीतल यामिनी सी,
तन, मन तरंगित कर रही, कृष्ण की उस रागिनी सी,
चाहे कैसी भी तपिश हो, अब हर तपिश तेरी हरूं मैं ।
आपकी ख्वाहिश बनूं मैं…
तेरा मानती आभार हूं मैं, इस सृष्टि का आधार हूँ मैं ,
अनवरत कायम रखा है, मनुज का अस्तित्व हूँ मैं,
बिन तुम्हारे इस सृष्टि में, निष्कृष्ट ही बन कर रहूँ मैं।
आपकी ख्वाहिश बनूं मैं…
आप हो अर्धांग मेरे, और अर्धांगिनी हूँ मैं तुम्हारी,
आप हम जब भी मिलें तो, परिपूर्णता होती हमारी,
आपसे सामर्थ्य पाकर, नवसृजन कुछ कर सकूं मैं।
आपकी ख्वाहिश बनूं मैं…
मेरी इच्छा बस यही है - " आपकी ख्वाहिश बनूं मैं,
आप के दिल और नजर का, नूर बन कर ही रहूं मैं,"
आपकी ख्वाहिश बनूं मैं…