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अब पढ़े लिखे ये नौजवान, रोजी रोटी को भटक रहे,
दो रोटी की खातिर देखो, कितने फांसी पर लटक रहे ।
अब पढ़े लिखे ये नौजवान...

जिन्दा हैं भोजन चहिए ही, जीते जी भूखा कौन मरे,
खून खराबा, इज्जत औ’ हवालात की चिन्ता कौन करे,
नैतिकता की सारी बातें, जीवन के धर्म और दर्शन,
संयम के बाँध तभी तक हैं, जब तक हों अपने पेट भरे ।
ये पेट भूख की अग्नि कभी, न मिटे हाथ पर हाथ धरे ।।
अब पढ़े लिखे ये नौजवान....

बचपन में खिलोने छोड़ दिए, बे फ़िक्र जवानी भी छोड़ी,
बेजान किताबों में खपकर, यह कमर बेचारी भी तोड़ी,
रुखी सूखी पर इज्जत की, एक जून ही रोटी मिल जाती,
जिससे कॉलेज की डिग्री की, थोड़ी इज्जत तो बच जाती ।
डिग्री के गरूर में, मजदूरी के, काबिल भी तो नहीं रहे ।।
अब पढ़े लिखे ये नौजवान...

सामर्थ्य गजब की इनमे है, ये चने लौह के चबा सकें,
पर भूख बगावत को कैसे, कब तक, ये बन्दे दबा सकें,
जब उचित राह कोई दिखे नहीं, तो अनुचित राह पकड़ के ही,
अब पाप पुन्य के चक्कर में, ना विचलित हैं रत्ती भर भी ।
दो जून की रोटी की खातिर, सब बिकने को तैयार मिले ।।
अब पढ़े लिखे ये नौजवान...

कोई प्यार जरा इनको देदो, अपनत्व जरा अपना देदो,
इनकी आँखों के सपनों को, नेतृत्व नया बढ़ कर दे दो,
हैं लक्ष्य गगन से भी ऊँचे, अरमान हैं सागर से गहरे,
पथ के कांटे, पथ की मुश्किल, कैसे इन के आगे ठहरे ?
फिर भी दर दर ठोकर खाते, पथभ्रष्ट बने, पथ भ्रमित रहे ।।
अब पढ़े लिखे ये नौजवान...

अब पढ़े लिखे ये नौजवान, रोजी रोटी को भटक रहे,
दो रोटी की खातिर देखो, कितने फांसी पर लटक रहे ।
अब पढ़े लिखे ये नौजवान...

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