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हो छुट्टी या रविवार का दिन, बिस्तर बैठे फरमाते हैं,
हम चाय, पकौडे, व्यंजन, इन्हें थान पे ही पहुंचाते हैं,
हम इनकी पत्नी या नौकर, या इनके बच्चों की आया,
यदि देर जरा सी हो जाये, तो तेवर इनके चढ जाते हैं।

हो इनके सिर में दर्द जरा, हम से तो अपेक्षा रखते हैं,
हम बैठ सिरहाने बाम लगा, सर घण्टों दबाया करते हैं,
बेदर्द व मतलब के साथी, क्यूं सब शौहर ऐसे होते हैं,
पत्नी इक दिन बीमार पडे, तो ये झल्लाया करते हैं ।

पति सेवा धर्म है पत्नी का, हम को समझाया करते हैं,
पर ये पति के कर्तव्यों को, बस हंस के टाला करते हैं,
क्या क्या होते पति फर्ज लिखो, वो लिस्ट थमा दो इनको,
सुख से जीने की खातिर तो, हक लडकर लेने पडते हैं ।

खुद दफ्तर में बैठे बैठे, बस कुर्सी ही तोडा करते हैं,
पर दर्द बहुत है पैरों में, घर आके शिकायत करते हैं,
ना जाने किस किस के पीछे, दफ्तर के बहाने फिरते हैं,
पर घंटों, धूल धूसरित पैरों को, मुझसे दबवाया करते हैं ।

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