जब तुम्हारी धारणा, विपरीत मेरे हो गई,
अपने रिश्ते की उमर बस, कुछ पलों की रह गई ।
प्रेम और विश्वास दोनों, कम से कमतर हो गए,
सोचने के दायरे, संकीर्ण इतने हो गए,
प्यार की अब हर नजर, शंका में परिणित हो गई ।
अपने रिश्ते की उमर बस, कुछ पलों की रह गई ।
सात फेरे अग्नि के, वचनों के अब क्या अर्थ हैं ?
धर्म ग्रंथों में लिखे क्या, मन्त्र सारे व्यर्थ हैं ?
क्यूँ सभी की हैसियत, शब्दों के माफिक हो गई ?
अपने रिश्ते की उमर बस, कुछ पलों की रह गई ।
क्या हमारे दिल कभी, फिर उस तरह मिल पायेंगे,
क्या हमारे वह मधुर क्षण, लौट के फिर आयेंगे,
दिल में दरारें, सोच अपनी, बेमुरब्बत हो गई ।
अपने रिश्ते की उमर बस, कुछ पलों की रह गई ।
जब तुम्हारी धारणा, विपरीत मेरे हो गई,
अपने रिश्ते की उमर बस, कुछ पलों की रह गई ।