कोख पड़ी बच्ची चिल्लाये- “ ना बँगला, ना कार चाहिए,
मुझ को अपने भइया जैसा, ना कोई अधिकार चाहिए,
सांसें चलतीं रहें महज बस, इतना लाड, दुलार चाहिए,
मुझको मत मारो, मुझको तो, जीने का अधिकार चाहिए !
मम्मी पापा ! मुझ को केवल, जीने का अधिकार चाहिए !!
जीने का अधिकार चाहिए !!
क्यूँ अबोध, अजन्मी कन्या, गर्भ में ही मारी जातीं हैं ?
जन्म से पहले, किन जुर्मों में, सजा मौत की वह पातीं हैं ?
मुझ को मेरा दोष बता दो, मुझे नहीं कुछ और चाहिए,
जान बख्श दो केवल मेरी, बस इतना उपकार चाहिए,
मुझको मत मारो, मुझको तो, जीने का अधिकार चाहिए !
जीने का अधिकार चाहिए !!
वादा करती हूँ भाई को, मैं अपना सब कुछ दे दूंगी ,
दे कर उसको सारी खुशियाँ, सभी बलाएँ मैं ले लुंगी,
मुझको बस अपनत्व प्यार का, छोटा सा संसार चाहिए ,
राखी वाले दिन भईया का, अपने सिर पर हाथ चाहिए ,
मुझको मत मारो, मुझको तो, जीने का अधिकार चाहिए !
जीने का अधिकार चाहिए !!
मैं, आप से, इस समाज से, रखती केवल यही अपेक्षा,
बेटे सा व्यवहार हो मुझसे, और मिले ना कभी उपेक्षा,
भाई जैसा ही मुझ को भी, पढने का अधिकार चाहिए ,
क्षमता, प्रतिभा दिखा सकूं, निष्पक्ष वही परिवेश चाहिए,
मुझको मत मारो, मुझको तो, जीने का अधिकार चाहिए !
जीने का अधिकार चाहिए !!
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