सूरज, चाँद, सितारे बोलो, यह ब्रम्हाण्ड तुम्हारा है,
क्या दुनियां से परे कहीं, कोई घर द्वार हमारा है ?
बाबुल कहते -" ये घर बिटिया, चन्द दिनों का डेरा है,
बस मेहमान है तू इस घर की, पति घर ही बस तेरा है,
जिस की है तू, उस को सौंपू, जन्म सफल तब मेरा है,
बाद तेरे सुन प्यारी बिटिया, ये घर सुनसान, अन्धेरा है,"
मैं तुतला तुतला कर कहती- "बापू ये घर मेरा है। "
क्या दुनियां से परे कहीं, कोई घर द्वार हमारा है ?
बचपन बीता खेल खेल में, और यौवन तक पहुँच गई,
अपने घर के स्वप्न संजोये, और जब डोली में बैठ गई,
बाबुल की दहलीज छोड़ते, मैं असुअन संग भीज गई,
ममता छोड़ी पति घर खातिर, उसकी यह सुन खीज गई -
" घर तेरा तो बाबुल का था, पति घर रूप बसेरा है। "
क्या दुनियां से परे कहीं, कोई घर द्वार हमारा है ?
फिर भी पति घर स्वर्ग बनाकर, पति बाहों में झूल गई,
पति के मोहक मोह पाश में, कष्ट, क्लेश सब भूल गई,
कुल दीपक की किलकारी से, अन्तः मन तक महक गई,
माना था सौभाग्य गर्व से, उस की यह सुन तड़प गई -
" जा कर बैठो उस कोने में, हुक्म सुनो यह मेरा है। "
सूरज, चाँद, सितारे बोलो, यह ब्रम्हाण्ड तुम्हारा है,
क्या दुनियां से परे कहीं, कोई घर द्वार हमारा है ?