बड़े प्यार से इसे उठाती, पेस्ट, ब्रुश खुद इसे थमाती,
और चिलमची लेकर इसको, सुबह सुबह कुल्ला करवाती,
सबसे पहले चाय बना कर इसको बिस्तर पर देतीं हूँ,
फिर भी दोष मुझे देता तो, अपनी किस्मत पर रोती हूँ,
अगर जरा सी देरी होती, दिन भर ही मुझसे चिडता है,
और बहाने ढूंढ ढूंढ कर, हर पल ही मुझसे लड़ता है,
यह जो दोष बताता मुझ में, सारे के सारे हैं इस में,
पर ऐसे झूठे व्यक्ति की, कौन कहे, हिम्मत है किस में ?
घर में पडा पड़ा मलराता, आटा, सब्जी तक ना लाता,
जब में संग जाने की कहती, ड्राईवर बन संग में हो जाता,
क्या अच्छी, क्या चीज बुरी है, कभी नहीं मुझको बतलाता,
सत्य कहूँ इसका यह लक्षण, मुझको बिलकुल नहीं सुहाता,
वैसे तो संग में ले जाता, नहीं चाट तक कभी खिलाता,
जब प्यास से मैं व्याकुल हूँ, नहीं कोल्ड ड्रिंक तक पिलवाता,
वैसे तो अपनी तन्ख्वाह की पाई पाई तक देता है,
पर मैरिज डे, जन्मदिवस पर, गिफ्ट नहीं लाकर देता है ।
नई नई डिश रोज बनाती, खाने को सारी खा जाता,
पर अपनी फूटी जवान से, कैसी है ? न कभी बताता,
‘थैंक लैस’ है ‘जॉब’ हमारा, मरना, खपना व्यर्थ है सारा,
तब मेरा दिल यूँ कहता है, कुछ न बनाऊं कभी दुबारा,
पर अपने बच्चो की खातिर, कुछ न कुछ डिश नई बनाती,
आदत से मजबूर तभी तो, इसको भी भरपेट खिलाती,
पर अपनी ऐसी आदत से मुझको कष्ट बहुत देता है,
पता नहीं किन किन जन्मों के, गिन गिन के बदले लेता है ?
सबसे अच्छी किस साड़ी में, लगतीं हूँ , न कभी बताता,
अपनी ऐसी आदत से भी, मेरे दिल को बहुत दुखाता,
कहीं पार्टी में जाना हो, नहीं बताता, क्या में पहनूं ?
कभी नहीं खुश हो कर देखे, जुल्म अक्सर ऐसे भी सह् लूं.
साड़ी में लगतीं हूँ अच्छी, मगर सूट में उस से अच्छी,
पर इसको मुझ पर क्या फबता, जान न पाई हूँ मैं सच्ची,
मेरा मन लालायित रहता, मैं श्रृंगार करूँ यह देखे,
वैसे तो मैं जान हूँ इस की, पर किस्मत में नहीं ये लेखे ।
मेरी किट्टी के पैसे भी, बहला फुसला कर ले लेता,
चाहे मांग मांग मर जाऊं, कभी नहीं फिर वापस देता,
जहर वास्ते तक तो मुझ पर, देखो एक नहीं पैसा है,
तुम क्या जानो इसकी बातें, बेईमान, जुल्मी कैसा है,
कहता - “ मेरी जिम्मेदारी, जो भी चाहो मैं ला दूंगा,
जहर कहोगी यदि लाने को, वह भी मैं लाकर दे दूंगा,
पर साथ साथ खायेंगे दोनों, मिलकर ऊपर संग चलेंगे,
कभी लड़ेंगे, कभी भिड़ेंगे, लेकिन दोनों संग रहेंगे.
तुम्हें बीच में छोडूं कैसे, जन्म जन्म तक संग रहेंगे।”