कर्तव्य विमुख मत यहाँ बनो, कर्तव्य निभा कर देखो तो,
सुख चैन ना लूटो औरों का, दुख, दर्द मिटा कर देखो तो,
संतोष मिलेगा वह तुमको, धन, दौलत भी सब व्यर्थ लगे,
परमार्थ की राह में तुम अपना, एक कदम बढ़ा कर देखो तो।
क्यूँ फंसे स्वार्थ के दलदल में, कुछ स्वार्थ त्याग कर देखो तो,
यूँ आँख मूंद कर मत भट को, कुछ ज्ञान चक्षु से देखो तो,
संतोष, तृप्ति का तुम अनुभव, तब भली भांति कर पाओगे,
एक भूखे प्यासे व्यक्ति को, एक जून खिला कर देखो तो।
नफरत की फसलें बहुत हुई, कुछ प्यार, मोहब्बत रोपो तो,
अवगुण न निहारों औरों में, गुण खान दिलों में खोजो तो,
हीरे, पन्ने, मोती, माणिक, सब बहुत तुम्हें मिल जायेंगे,
संकल्प लिए हर एक दिल में, एक बीज प्यार का बोओ तो।
विश्वास, आस्था में रख कर, हृदय से उस को पूजो तो,
कण कण में है जो विद्यमान, उसकी महिमा को देखो तो,
उस परम पिता परमेश्वर से, मन वांछित फल पा जाओगे,
एक साधारण से पत्थर को, भगवान मान कर देखो तो।
अब दुर्योधन और दुशासन ही, पग पग मर्यादा तोड रहे,
कर्तव्य विमुख बन कर सारे, आँखें यथार्थ से मोड़ रहे,
यदि रोको कोई चीर हरण, तुम कृष्ण अवतार कहाओगे,
लाचार बेचारी अबला की, कोई लाज बचा कर देखो तो।
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