प्रभु मिल जायें जो एक बार,
मैं, यही प्रश्न पूंछूंगी बार बार,
सृष्टि के रचेता, संचालक,
क्यों रच कर करते खुद संहार ?
औचित्य है क्या इन कृत्यों का,
मन में शंका दुविधा अपार।
प्रभु मिल जायें जो एक बार …
सज्जन, दुर्जन सब तेरी रचना,
फिर अलग अलग हैं क्यूँ विचार,
क्यों रोप दिए दुर्जन मन में,
विध्वंसक, मायावी विकार ?
सकारात्मक सोच करो सबका,
हों नव सृजनात्मक सबके विचार।
प्रभु मिल जायें जो एक बार …
अपनत्व, समर्पण, सौहार्द, त्याग,
कुछ मानें जीवन के श्रृंगार,
कुछ सरल स्वभावी लोग यहाँ,
कुछ में है असीमित अहंकार,
विनती करती, मानव मन से -
" तू अहंकार का ज्वर उतार "
प्रभु मिल जायें जो एक बार …
आप उच्चकोटि के बाजीगर,
पर जग कहता करुणा सागर,
फिर क्यूं देख नहीं तुम पाते हो,
दुर्जन की छल प्रपंच भरी गागर,
क्या तुमको विचलित नहीं करे,
नयनों से बहती अश्रु धार ?
प्रभु मिल जायें जो एक बार …
मन भेद कभी होने न पायें,
मतभेद भले हों लाखों हजार,
अज्ञान हरो हम भक्तों का,
तुम पर विश्वास, आस्था अपार,
विस्तृत कर दो यह अल्प ज्ञान,
हम बदल सकें खुद तदानुसार।
प्रभु मिल जायें जो एक बार …